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रिलेशनशिप में प्यार ही नहीं बल्कि गुस्सा भी है बहुत जरूरी है

अगर आप आज की तनाव और घुटन भरी उबाऊ जिंदगी में जीते हुए भी खुश, तन्दुरुस्त और सुखी रहना चाहती हैं तो गुस्से से काम लीजिए। जिसे सारी दुनिया बीमारी कहती है, हम उसी को इलाज बता रहे हैं, लेकिन यह है सरासर सच और इसकी गवाही बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक भी दे चुके हैं। ‘‘गुस्सा’’ जिसे हमारा समाज इंसान की कमजोरी, बेवकूफी, पागलपन या गंवारपन समझता है, वास्तव में हमारे लिए अभिशाप नहीं, वरदान है। गुस्सा भी प्यार, ममता, स्नेह और दया जैसी ही एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, जो हमें सहज और स्वस्थ बनाए रखती है।

यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आहार पर हम इस बात को मानने और समझने से मुंह चुराते हैं, क्योंकि हम सभ्यता का मुखौटा चढ़ाए हैं। हम सभ्यता के चाहे जितने गिलाफ चढ़ा लें, ऊपर से चाहे जितने आदर्शवादी बन जाएं मगर अंदर से तो इंसान ही रहेंगे और गुस्सा इंसानियत की निशानी है, हमारा स्वभाव हमारी प्रकृति है। सोचिये, गुस्सा कब और क्यों आता है? उदाहरण के लिए कुछ घटनाएं ले लेते हैं। शाम को पतिदेव के साथ आपको किसी के घर खाने पर जाना है। आप शाम को तैयार होकर घंटों बैठी रहीं और रात को 1० बजे पतिदेव आकर कहते हैं, ‘‘अरे, मैं तो भूल ही गया था।’’ आज रात घर पर कुछ लोगों की दावत है।

सामान की लिस्ट आपने सुबह ही दे दी थी, मगर पतिदेव शाम को सामान लाना भूल ही गए। शाम को आप थकी-हारी आॅफिस से लौटी तो घर में ताला पड़ा था। अपनी कोई खास राज की बात अपनी पक्की दोस्त को बताई और उसने वह राज सबको बता दिया। आपके सुपुत्र का इम्तिहान सिर पर है और वह दिन भर क्रिकेट खेलता है और शाम से टी. वी. देखने बैठ जाता है। इसी तरह की बहुत सी बातें हैं, जो हमें गलत या बुरी लगती हैं, जिससे हमें चोट पहुंचती है, मानसिक आघात लगता है, हमारी भावनाओं को ठेस लगती है, हमें दुख होता है और हमें गुस्सा आता है। ऐसी प्रतिकूल और अनचाही स्थितियों के लिए गुस्सा ही सबसे अच्छी सही और स्वाभाविक प्रतिक्रिया है।

ऐसे में गुस्सा कर लेने से एक तो हमारे दिल का गुबार निकल जाता है, हमारी भावनाओं को बाहर निकलने का एक रास्ता मिल जाता है और हमें यह भी सुकून हो जाता है कि हमारी चोट का एहसास दूसरों को हो गया है। यह गुस्सा एक सबक हो जाता है और दूसरों की जल्दी हिम्मत नहीं पड़ती कि दुबारा हमारे साथ कोई धोखा, चालाकी या विश्वासघात करें। इसीलिए ऐसी स्थितियों पर अपनी नाराजगी जाहिर करना बेहद जरूरी है। गुस्सा करते समय इन बातों का ध्यान रखिए:- व्यंग्य और तानों का प्रयोग करने के स्थान पर सादी भाषा में गुस्सा प्रकट करें। सामने वाले को नीचा दिखाने की कोशिश न करें। उसकी बातों पर विश्वास न करें और उसे अपनी सफाई देने का पूरा मौका दें।

उसको सजा देने के इरादे से या उसे चिढ़ाने के लिए बेतुकी बातें न करें। अगर आप गुस्सा करती हैं तो दूसरे का गुस्सा सहन करना भी सीखिए। और यदि आप इतने गुस्से में हैं कि आप किसी बात का ध्यान नहीं रख सकती तो फौरन गुस्सा न कीजिए, उठकर अपने कमरे में चली जाएं, रेडियो या टी. वी. खोलकर बैठ जाएं या संगीत सुनने लगें या फिर घर से बाहर कहीं चली जाएं और जब गुस्सा थोड़ा शांत हो जाए तो ऊपर लिखे ढंग से अपना गुस्सा व्यक्त करने की कोशिश करें, तभी आपका गुस्सा कारगर होगा। एक खास बात और समझ लीजिए। गुस्सा होने के बाद आपको कभी शर्मिंदा नहीं होना चाहिए, न ही आप अपने गुस्से के लिए माफी मांगें।

आपको यह आत्मग्लानि बिल्कुल नहीं होनी चाहिए कि मैंने गलत किया, मैं होश खो बैठी, मुझे अपने पर काबू नहीं रहा या ऐसा नहीं होना चाहिए था, बल्कि आपको यह विश्वास और संतोष होना चाहिए जो कुछ आपने किया वह स्थिति को देखते हुए सर्वथा उचित था और यही होना भी चाहिए था। अंत में हम फिर यही कहेंगे कि गुस्सा बड़े काम की चीज है। आपने सुना भी होगा कि जहां लड़ाई अधिक होती है, वहीं प्यार भी अधिक होता है। अगर आप चाहती हैं कि आपके आपसी संबंध हमेशा मधुर और घनिष्ठ बने रहें और रिश्ते के ये बंधन न सिर्फ नाम के लिए, बल्कि सचमुच आपके लिए ‘‘आन्तरिक प्रसन्नता’’ का चिर स्रोत बने रहें तो गुस्सा करना सीखिए क्योंकि जीवन को संतुलित रखने के लिए सिर्फ प्यार ही काफी नहीं है, गुस्सा भी बेहद जरूरी है।

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