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हिमालय के ऊपर बढ़ेगा तापमान…बाढ़ और लैंड स्लाइड को लेकर खतरे की घंटी

 

हिमालय पर्वत शृंखला दुनिया भर की सबसे विशाल पर्वत शृंखला है। इसके ग्लेशियर से निकली नदियों से करीब दनिया के 2 अरब लोगों की पानी की जरूरतें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूरी होती हैं। यह अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक फैला जिसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन और बांग्लादेश भी शमिल हैं। आपको बता दें कि, अब जलवायु परिवर्तन की वजह से हमारा हिमालय गर्म हो रहा है। इसरो के वैज्ञानिकों की अगुआई में हुए अध्ययन में खुलासा हुआ है,कि हालात बहुत नाजुक हो रही है और इसके लिए जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती पानी की महीन बूंदें जिम्मेदार हैं:

रिपोर्ट में बताया गया है कि अकेले एरोसॉल ही निचले वायुमंडल को गर्म करने के लिए 50 फीसदी जिम्मेदार है जबकि बाकी भूमिका ग्रीन हाउस गैसों की है। साफ तौर पर पाया गया है कि एरोसॉल से ना केवल इलाका गर्म हो रहा है,बल्कि वह जलवायु परिवर्तन का प्रमुख बनने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने की दर को बढ़ाने के साथ ही बारिश के स्वरूपों में भी बदलाव ला रहा है।

पहली बार हुए इस तरह क अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि ऐरोसोल रेडिएटिव फोर्सिंग कारगरता दक्षिण और पूर्वी एशिया के तुलना में 2-4 गुना अधिक है।अध्ययन की पड़ताल के नतीजे हाल ही में द साइंस ऑफ टोटल एनवायर्नमेंट जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में पाया गया है कि अवलोकित वार्षिक औसत एरोसॉल जनित वायुममंडलीय ऊष्मन पहले की तुलना में अधिक पाया गया है। इससे एशिया की करीब 2 अरब की वजह जनसंख्या सीधे तौर पर प्रभावित होगी जो पीने के पानी के साथ ही, सिंचाई और ऊर्जा के लिए भी हिमालय पर निर्भर है।

बढ़ने लगेंगी बाढ़, भूस्खलन जैसी आपदाएं:

हिमालय के ऊपर तापमान बढ़ने का सीधे तौर पर ग्लेशियरों को अस्थिर करने का काम करेगा जो पहले से ही हिमालय के रिहायशी इलाकों के पास तबाही का खतरा बन चुके हैं और अपने साथ भूस्खलन जैसी खतरनाक घटना ला दते हैं। इसमें ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से असमय आने वाली की बाढ़ एक सहायक कारक बन जाती है। जिससे बारिश के पैटर्न में बदलाव होगा और मानसूनतो प्रभावित होगा ही हिमालय पर होने वाली असमय बारिश और बर्फबारी बढ़ेगी।

जिसका भारत पर गहरा असर होगा। लेकिन खतरा यहीं तक रुका नहीं है,एरोसॉल के कारण 2 हजार किलोमीटर लंबी हिमालय पर्वत शृखला में लगातार बर्फ का नुकसान हो रहा है और तेजी से ग्लेशियर पिघलने का एक प्रभाव यहां के जलचक्र तक को प्रभावित करेगा।

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