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Mother से अच्छा Tutor कोई नही

अपने बच्चों को महंगे पब्लिक स्कूलों में पढ़ाने की लालसा आज इस कदर बढ़ चुकी है कि माता-पिता अपने तीन साल के कलेजे के टुकड़े को किसी न किसी स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए रात-दिन बेचैन दिखाई देते हैं। अधिकतर माता-पिता पब्लिक स्कूल और महंगे अध्यापक की ट्यूशन को बच्चे की उत्तम पढ़ाई का मापदंड मान लेते हैं, लेकिन इसके बाद भी कई बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा नहीं होती और न ही वह ठीक से पढ़ाई ही कर पाता है। केवल स्कूल की पढ़ाई पर या ट्यूटर की पढ़ाई पर बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा करना संभव नहीं है। माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए समयाभाव का होना बड़ी ही शर्मनाक स्थिति का बोध कराने वाला होता है। व्यस्ततम जीवन में से थोड़ा-सा समय निकालकर बच्चों को खुद पढ़ाना अनिवार्य होता है। जब भी बच्चों के लिए कुछ समय निकालें, कुछ खास बातों का ध्यान अवश्य ही रखें। बच्चों को पढ़ाई के लिए खुशनुमा माहौल देना चाहिए।

घर में टी.वी., टेप रिकार्डर आदि का तेज आवाज में चलना, घर के अन्य सदस्यों का आपस में जोरजोर से बातें करना, आदि के कारण बच्चों का मन पढ़ाई में एकाग्र नहीं हो पाता और चाहकर भी पढ़ाई में मन नहीं लगा पाते। अगर वह कुछ पढ़ता भी है तो ग्रहण नहीं कर पाता है। बच्चों के स्कूल की कापियां स्वयं जांचनी चाहिए। उसकी लिखावट पर स्वयं ध्यान दें। लिखावट खराब होने पर उसे डांटें नहीं बल्कि उसमें लिखने के प्रति जिज्ञासा या ललक जगावें। बच्चे बहुत जिज्ञासू होते हैं। उनके द्वारा पूछे गये प्रश्नों को टालिए नहीं बल्कि उनके प्रश्नों के उत्तर रोचक बनाकर देने चाहिए चाहे प्रश्न बेतुके ही क्यों न हों।अच्छे अंक आने पर बच्चों को शाबाशी अवश्य दें किन्तु कम अंक आने पर उसे डांटने की बजाय आगे अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करें। डांटे जाने पर बच्चे जिद्दी हो जाते हैं और पढ़ने में आनाकानी करने लगते हैं। ऐसे विषयों को पढ़ाने के लिए चित्र-नक्शा आदि का सहारा लेना चाहिए। खेल-खेल में बच्चों को जटिल से जटिल अरुचिकर विषयों को भी बताया जा सकता है। चित्र और नक्शों के जरिए बच्चे किसी भी बात को तुरन्त समझ लेते हैं। पढ़ाई के बोझ से दबकर बच्चे कई सिर सिरदर्द, पेटदर्द आदि का बहाना बना लेते हैं। बच्चे की बहानेबाजी को भी समझना आवश्यक है।

अगर इस पर विशेषतौर पर ध्यान न दिया गया तो बच्चे बहाना बनाने के अभ्यस्त हो जायेंगे और भविष्य में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अगर बच्चे के लिए कोई ट्यूटर रखा गया है तो टीचर की पढ़ाई पर भी ध्यान देना आवश्यक है। इससे बच्चों को लगेगा कि माता-पिता भी टीचर के अलावा उनमें दिलचस्पी रखते हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है। कभी-कभी बच्चे लालच दिये जाने पर ही पढ़ा करते हैं। उनकी कमजोरी का लाभ उठाते हुए कभी-कभार टॉफी, आइसक्रीम आदि का लालच देकर भी पढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। कान ऐंठकर सिर्फ अपनी बात मनवाने की कोशिश कभी नहीं करनी चाहिए बल्कि बच्चों की बातों एवं सुझावों को भी सम्मान देना आवश्यक होता है। ’ बच्चों को पढ़ाते समय अनावश्यक क्रोध नहीं करना चाहिए। उस पर झल्लाने की बजाय अपने पढ़ाने के तौर-तरीकों पर गौर करके उनमें परिवर्तन लाने की कोशिश की जानी चाहिए। शिक्षक की बुराई बच्चों के सामने करते रहने से बच्चों के मन से शिक्षक के प्रति आदर की भावना समाप्त होने लगती है। शिक्षक को कुछ कहना ही हो तो बच्चों से अलग हटकर कहना चाहिए। वह धु्रव सत्य है कि मां से बढ़कर बच्चों के लिए अन्य दूसरा ट्यूटर नहीं हो सकता इस कारण मां को अपने बच्चों की पढ़ाई पर विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक है।

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