नई दिल्लीः वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बाहरी खतरा बना हुआ है, लेकिन वैश्विक जीवन प्रत्याशा पर इसका अधिकांश प्रभाव भारत सहित सिर्फ छह देशों में केंद्रित है। एक अध्ययन में यह दावा किया गया। शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एपिक) ने अपनी वार्षिक वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) रिपोर्ट में कहा कि 2021 में वैश्विक प्रदूषण बढ़ने के साथ मानव स्वास्थ्य पर बोझ भी बढ़ गया।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देश को पूरा करने के लिए विश्व स्थायी रूप से सूक्ष्म कण प्रदूषण (पीएम2.5) को कम कर दे, तो औसत एक व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा में 2.3 वर्ष जुड़ जाएंगे या दुनिया भर में कुल मिलाकर 17.8 अरब जीवन-वर्ष बचेंगे। आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि सूक्ष्म कणों से प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए दुनिया का सबसे बड़ा शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका में प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा, ‘‘वायु प्रदूषण का वैश्विक जीवन प्रत्याशा पर प्रभाव का तीन चौथाई हिस्सा केवल छह देशों- बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, चीन, नाइजीरिया और इंडोनेशिया में है। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार मानव जीवन पर वायु प्रदूषण से सर्वाधिक खतरे के मद्देनजर वैश्विक वायु गुणवत्ता अवसंरचना के लिए सामूहिक मौजूदा निवेश अपर्याप्त लगता है।