नई दिल्ली: डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर भले ही सुशिक्षित और विद्वान होने के चलते कोई अच्छा व्यवसाय चुन सकते थे, लेकिन फिर भी उन्होनें अपना जीवन भारत में समाज से अत्याचारों को मिटाने के लिए समर्पित करने का फैसला लिया। वह समस्त समाज को उनके विभिन्न अधिकार प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध थे, भले ही इन लोगों की जाति, लिंग और धर्म कोई भी था। इसके साथ ही उन्होंने देश में महिलाओं को सशक्त बनाने पर भी ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि कोई महिला शिक्षित होती है, तो वह न केवल अपने परिवार को बदल सकती है, बल्कि बड़े पैमाने पर समाज का उत्थान करने में भी योगदान दे सकती है। यह विचार नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल कास्ट्स के अध्यक्ष विजय सांपला ने डॉ अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) द्वारा अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर पर आज आयोजित एक कार्यक्रम में श्रद्धांजलि देते हुए व्यक्त किए ।
उन्होंने कहा बीआर अंबेडकर ने दलितों के उत्थान पर भी ध्यान केंद्रित किया था ताकि उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा मिल सके। अंबेडकर ने भारत का निष्पक्ष और तर्कसंगत संविधान लिखकर यह सुनिश्चित किया कि समाज के प्रत्येक वर्ग के साथ समानता का व्यवहार हो। युवाओं को संबोधित करते हुए नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल कास्ट्स (एनसीएससी) के अध्यक्ष ने भारत की शिक्षा प्रणाली को बदलने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जो लोगों को केवल कौशल प्रदान करने पर केंद्रित है, लेकिन उनमें जीवन मूल्यों का समावेश नहीं करती। आज युवा पीढ़ी जो शिक्षा प्राप्त कर रही है, वह उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पर्याप्त ज्ञान तो प्रदान करती है, लेकिन उन्हें मानवीय मूल्यों और उनके कर्तव्यों की जानकारी उपलब्ध नहीं करवाती। लोग संपत्ति के अपने अधिकार तो जानते हैं, लेकिन परिवार और समाज के प्रति कर्तव्यों को नहीं समझते।
सांपला ने यह भी कहा कि हर व्यक्ति को माता-पिता, भाइयों -बहनों व बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों को जानना चाहिए और उनके बीच शांति एवं सद्भाव सुनिश्चित करना चाहिए। आगे सांपला ने कहा कि हालांकि स्कूली शिक्षाप्रणाली आसानी से नहीं बदली जा सकती, लेकिन लोगों को मूल्याधारित शिक्षा प्रदान करने के लिए महाविद्यालयी शिक्षा में इस से संबंधित विषय शामिल किए जा सकते है। इस क्षेत्र में इग्नू बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है ।