नेशनल डेस्क: लोगों की सेहत को लेकर एक चिंता में डालने वाली रिपोर्ट सामने आई है। एक अध्ययन के मुताबिक दुनियाभर में स्ट्रोक से मरने वालों की संख्या अगले तीन दशक में प्रतिवर्ष एक करोड़ होने की संभावना है। जी हां अगर अभी से प्रभावी कदम नहीं उठाए जाते हैं तो दुनियाभर में साल 2050 तक स्ट्रोक (stroke) से मरने वाले लोगों की संख्या 50 फीसदी बढ़कर प्रतिवर्ष 97 लाख तक होने का अनुमान है। लैंसेट न्यूरोलॉजी जर्नल ( (Lancet Neurology Journal)) में प्रकाशित एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। 2020 से 2050 के बीच स्ट्रोक के कारण स्वास्थ्य की समस्या एवं आर्थिक प्रभावों में तेजी आएगी और खास तौर पर निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों (LMIC) पर आघात का प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
स्ट्रोक की समस्या ऐसे क्षेत्रों में ज्यादा होगी जहां भूख, गरीबी, बीमारी और प्राकृतिक आपदा का संकट हो। वहीं कई क्षेत्रों में स्वास्थ्य समस्याओं और चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी की वजह से भी इसका खतरा होगा। कुछ क्षेत्रों में औद्योगीकरण के चलते मानव श्रम पर आए अत्यधिक दबाव के कारण। भारत इन्हीं क्षेत्रों में शामिल है जहां की स्थिति आज भी बहुत चिंताजनक है। यहां यह समस्या कितनी आम हो गई है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में हर चार मिनट में एक व्यक्ति की जान आघात से जा रही है। एक आंकड़े के मुताबिक आघात के 68.6 फीसद और इससे मौत के 70.9 फीसद मामले भारत में सामने आते हैं। यह बीमारी अमूमन पैंसठ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में होती है, लेकिन भारत में बीस वर्ष तक के इकतीस फीसद युवा और बच्चे भी अब इसकी चपेट में आ रहे हैं। यहां मौत का दूसरा सबसे सामान्य कारण आघात के रूप में सामने आ रहा है। आखिर क्या वजह है कि कारण और स्थितियां जगजाहिर होने के बावजूद यह समस्या इतने जटिल रूप में गहराती जा रही है।
मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रानिक संसाधनों पर अधिक समय बिताना, बाहर का खाना विशेषकर ‘जंक फूड’ पर निर्भरता, देर रात सोना और सुबह देर से जागना, पारिवारिक अलगाव, एकाकीपन जैसी समस्याएं आज आम होती जा रही हैं। इन कारणों से तनाव, उच्च रक्तचाप, मोटापा, हृदय की बीमारियां लोगों को घेर रही हैं।
हालिया सर्वे और दुनियाभर के स्ट्रोक विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कार के आधार पर लेखकों ने तथ्य-आधारित व्यावहारिक सिफारिशें की है ताकि वैश्विक बोझ को कम किया जा सके। इन सिफारिशों में स्ट्रोक पर निगरानी को बेहतर बनाने, इसकी रोकथाम, अच्छी देखभाल और पुनर्वास जैसे उपाय शामिल हैं। लेखकों का कहना है कि स्ट्रोक से जूझने वाले लोगों की संख्या, स्ट्रोक से मौत या फिर इस स्थिति से परेशानी में रहने के मामले दुनियाभर में बीते 30 वर्षों में करीब दोगुने हो चुके हैं, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों से हैं। लेखकों के मुताबिक, उच्च आय वाले देशों की तुलना में स्ट्रोक की दर कम आय वाले देशों में बहुत तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि अगर यह चलन जारी रहा तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुख्य सतत विकास लक्ष्यों में से एक पूरा नहीं हो पाएगा। सतत विकास लक्ष्य 3.4 का मकसद 2030 तक स्ट्रोक सहित गैर संचारी रोगों से, समय पूर्व होने वाली 4.10 करोड़ मौतों में एक तिहाई कमी लाना है।
न्यूजीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर वलेरी एल. फिजिन ने कहा, ”वैश्विक आबादी पर स्ट्रोक का बहुत भारी असर पड़ता है, जिसकी वजह से हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवाते हैं या फिर स्थायी अक्षमता का शिकार होते हैं। इतना ही नहीं, इसके इलाज पर अरबों डॉलर का भी खर्च आता है।” फिजिन ने कहा, ”भविष्य में अनिश्चितता के स्तर को देखते हुए स्ट्रोक के स्वास्थ्य संबंधी एवं आर्थिक प्रभावों का सटीक पूर्वानुमान लगाना स्वाभाविक रूप से चुनौतीपूर्ण है और ये अनुमान हमें संकेत दे रहे हैं कि अगर प्रभावी कदम नहीं उठाए जाते हैं तो आने वाले वर्षों में इन मामलों में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिलेगी।” देशों में बढ़ती आबादी और लोगों की उम्र को ध्यान में रखते हुए, यह अध्ययन संकेत देता है कि 2050 तक दुनियाभर में स्ट्रोक से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या 50 फीसदी तक बढ़ जाएगी। यह संख्या 2020 में 66 लाख थी लेकिन अगले 30 वर्षों में इसके 97 लाख होने का अनुमान है।
विश्व स्ट्रोक संगठन के निर्वाचित अध्यक्ष और अध्ययन के प्रमुख लेखकों में से एक प्रोफेसर जयराज पांडियन ने बताया, ”2020 में दुनियाभर में स्ट्रोक से होने वाली मौतों में एशिया (61 फीसदी, करीब 41 लाख मौतें) का सबसे बड़ा हिस्सा था और 2050 तक इसमें करीब 69 फीसदी (करीब 66 लाख मौतें) की वृद्धि का अनुमान है। वहीं 2020 में विश्व में स्ट्रोक से होने वाली मौतों में उप-सहारा अफ्रीकी देशों का हिस्सा छह प्रतिशत (403,000) था, जो 2050 में बढ़कर आठ फीसदी (765,000) होने का अनुमान है।”