लॉजिस्टिक लागत में कमी लाने की दिशा में DFC की बड़ी भूमिका,समय पर सस्ती आपूर्ति से माल ढुलाई में क्रांतिकारी बदलाव

यह परिवर्तन भारत सरकार के उस लक्ष्य को गति देगा, जिसमें लॉजिस्टिक लागत को सिंगल डिजिट में लाने का प्रयास किया जा रहा है।

नई दिल्ली (आकाश द्विवेदी): माल ढुलाई में लागत को कम करने और परिवहन प्रणाली को अधिक कुशल बनाने के उद्देश्य से निर्मित डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। इस 2843 किलोमीटर लंबे कॉरिडोर पर हर 12 मिनट में एक मालगाड़ी गुजर रही है, और अगले साल तक यह संख्या बढ़कर प्रतिदिन 480 मालगाड़ियों तक पहुंच जाएगी। यह परिवर्तन भारत सरकार के उस लक्ष्य को गति देगा, जिसमें लॉजिस्टिक लागत को सिंगल डिजिट में लाने का प्रयास किया जा रहा है।

डीएफसी के वेस्टर्न कॉरिडोर के न्यू दादरी से न्यू फुलेरा तक के रेल यात्रा के दौरान मीडिया के सदस्यों को डीएफसी की प्रगति की जानकारी दी गई। इस अवसर पर डीएफसी के कॉरपोरेट कम्युनिकेशन उप महाप्रबंधक चित्रेश जोशी ने बताया कि ईस्टर्न और वेस्टर्न कॉरिडोर की 97 प्रतिशत परियोजना पूरी हो चुकी है और फिलहाल इस पर प्रतिदिन 350 मालगाड़ियों का सफलतापूर्वक संचालन हो रहा है। ,2843 किलोमीटर लंबे डीएफसी में से 2741 किलोमीटर का ट्रैक पहले ही तैयार हो चुका है।

मुंबई से बैतरणा के बीच 103 किलोमीटर का ट्रैक निर्माणाधीन है, जो अगले साल तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद डीएफसी पूरी क्षमता से प्रतिदिन 480 मालगाड़ियों के संचालन के लिए तैयार होगा। डीएफसी की मदद से भारतीय रेलवे की कुल माल ढुलाई का करीब 20 प्रतिशत हिस्सा कॉरिडोर के माध्यम से होगा, जबकि फिलहाल यह आंकड़ा लगभग 10 प्रतिशत है। परियोजना के पूरी तरह से चालू होने के बाद, भारतीय रेलवे की माल ढुलाई की क्षमता और दक्षता में बड़ा उछाल देखने को मिलेगा।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि डीएफसी के माध्यम से मालगाड़ियां बिना किसी बाधा के सीधे अपने गंतव्य तक पहुंच सकेंगी, जिससे समय और संसाधनों की बचत होगी। इस कॉरिडोर का उपयोग तब और अधिक प्रभावी हो जाएगा जब यह जेएनपीटी (जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट) और अन्य प्रमुख बंदरगाहों से पूरी तरह से जुड़ जाएगा, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए भी एक सुगम मार्ग प्राप्त होगा। डबल स्टैक कंटेनरों के माध्यम से बड़े पैमाने पर सामान की ढुलाई, दूध टैंकर, ई-कॉमर्स उत्पादों और जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं की तेज आपूर्ति जैसे प्रमुख क्षेत्रों में डीएफसी एक गेम चेंजर साबित होगा।

इन वस्तुओं को तेजी से और अधिक दूरी तक पहुंचाने में सक्षम होने से व्यापारियों और उपभोक्ताओं को समय और लागत दोनों की बचत होगी। व्यापार के विस्तार और आपूर्ति श्रृंखला को अधिक कुशल बनाने में डीएफसी की भूमिका निर्णायक होगी। डीएफसी की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक है इसकी क्षमता लॉजिस्टिक लागत को सिंगल डिजिट तक लाना। फिलहाल भारत में लॉजिस्टिक लागत कुल जीडीपी का करीब 13 से 14 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका और चीन में यह 8 से 9 प्रतिशत के बीच है। डीएफसी के पूरी तरह से कार्यशील हो जाने पर भारत की लॉजिस्टिक लागत में भी उल्लेखनीय कमी आएगी, जिससे यह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में और अधिक मजबूती से उभर सकेगा।

लॉजिस्टिक लागत में कमी से न केवल उद्यमियों को लाभ मिलेगा, बल्कि इसका असर उपभोक्ताओं तक भी पहुंचेगा, क्योंकि वस्तुओं की लागत कम हो जाएगी और समय पर उनकी आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी। डीएफसी का जाल उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे प्रमुख औद्योगिक राज्यों से गुजरता है, जिससे यह कॉरिडोर इन राज्यों की अर्थव्यवस्था और औद्योगिक गतिविधियों को सीधा फायदा पहुंचाएगा। इन राज्यों में स्थित उद्योगों को अपनी उत्पादकता बढ़ाने और माल की तेज और सस्ती ढुलाई के लिए डीएफसी से बड़ा लाभ मिलेगा।

इसके अलावा, इसका प्रभाव देश के अन्य हिस्सों में भी दिखेगा, क्योंकि यह देश के विभिन्न हिस्सों में आपूर्ति श्रृंखला की गति को और अधिक मजबूत करेगा। इसके साथ ही, डीएफसी के निर्माण के बाद भारतीय रेलवे की करीब 15 प्रतिशत से अधिक रेल लाइनें मालगाड़ियों के बोझ से मुक्त हो गई हैं। इसका सीधा फायदा यात्री ट्रेनों को मिलेगा, क्योंकि यात्री ट्रेनों की संख्या और उनकी समय सारणी में भी सुधार होगा। रेलवे के यात्री सेवाओं में सुधार से आम जनता को बेहतर यात्रा अनुभव प्राप्त होगा और भारतीय रेलवे के राजस्व में भी वृद्धि होगी। डीएफसी न केवल माल ढुलाई के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है, बल्कि यह भारतीय रेलवे के यात्री सेवाओं और समग्र रेल नेटवर्क पर भी सकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।

इसके अलावा, डीएफसी परियोजना भारत को लॉजिस्टिक लागत में अमेरिका और चीन के स्तर पर लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे भारतीय उद्यमियों को न केवल घरेलू बाजार में प्रतिस्पर्धा का लाभ मिलेगा, बल्कि वैश्विक बाजार में भी उनकी पकड़ मजबूत होगी। इस प्रकार, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना भारत की लॉजिस्टिक प्रणाली में एक बड़ा बदलाव ला रही है, जिससे उद्योग, उपभोक्ता और रेलवे सभी को लाभ होगा।

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