तिरुवनंतपुरम। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को उस ‘सुनियोजित और वित्तीय रूप से समर्थित दुस्साहस’ पर चिंता जताई जिसका मकसद ‘दबदबा सुनिश्चित करने के लिए’ देश में धर्मांतरण कराना है। उन्होंने सभी से इसे विफल करने के लिए सतर्क रहने का आग्रह किया। भारतीय विचार केंद्र द्वारा आयोजित चौथे ‘पी परमेश्वरन स्मारक’ व्याख्यान में धनखड़ ने कहा कि जनसांख्यिकीय विकास जैविक और प्राकृतिक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर अजैविक भिन्नताएं होती हैं, तो ‘‘हमें चिंतित होना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकी मायने रखती है और इसे बहुसंख्यकवाद के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज को दो खेमों में विभाजित नहीं कर सकते। जनसांख्यिकीय विकास जैविक, प्राकृतिक और सामंजस्यपूर्ण होना चाहिए, केवल तभी यह विविधता में एकता को दर्शा सकता है। उन्होंने दावा करते हुए कहा, ‘‘लेकिन अगर जनसांख्यिकीय विविधताएं एक आभासी भूकंप की तरह लाई जाती हैं, तो यह चिंता का कारण है। अगर अजैविक जनसांख्यिकीय बदलाव किसी विशेष जनसांख्यिकीय घटक को बढ़ाने के इरादे से होते हैं, तो हमें चिंतित होना चाहिए। ऐसा हो रहा है। यह स्पष्ट रूप से हो रहा है।’’
उपराष्ट्रपति ने आरोप लगाया कि धर्मांतरण विभिन्न तरीकों से किया जा रहा है, जिसमें ‘प्रलोभन, लालच, जरूरतमंदों और कमजोर लोगों तक पहुंचना, सहायता प्रदान करना और फिर धर्म परिवर्तन का सुझाव देना’ शामिल है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोगों के दर्द, कठिनाइयों या जरूरतों का फायदा उठाकर उन्हें धर्मांतरण की तरफ धकेलना ‘बर्दाश्त से बाहर’ है। उन्होंने कहा, ‘‘देश हर किसी को अपना धर्म चुनने की आजादी देता है। यह एक मौलिक अधिकार है, जो हमारी सभ्यतागत विरासत से हमें मिला है। लेकिन अगर इस अधिकार के साथ छेड़छाड़ या हेरफेर किया जाता है, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। लालच और प्रलोभन धर्म परिवर्तन का आधार नहीं हो सकता।’’ धनखड़ ने कहा कि वे इस चुनौती की गंभीरता को पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर सकते जिसका सामना देश इन ‘रणनीतिक, सुनियोजित और आर्थिक रूप से समर्थित दुस्साहसों’ के कारण कर रहा है, जिसका उद्देशय़ धर्मांतरण कराना है।’’ उन्होंने दावा किया कि इन धर्मांतरण के पीछे एक और मकसद ‘राष्ट्र के प्रति दुर्भावना’ है। उन्होंने लाखों अवैध अप्रवासियों और उनके द्वारा उत्पन्न खतरों पर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा, ‘‘ये लोग आते हैं, हमारे रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा क्षेत्रों को लेकर मांग करते हैं और फिर चुनावी राजनीति में एक कारक बन जाते हैं। यह एक जरूरी मुद्दा है जिसका समाधान किया जाना चाहिए। जागरूकता पैदा की जानी चाहिए। लोगों की मानसिकता को सक्रिय किया जाना चाहिए। हर भारतीय को इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अनियंत्रित प्रवासन हमारी संस्कृति को भी खतरे में डाल रहा है। मैं सभी से इन जनसांख्यिकीय व्यवधानों को साहसपूर्वक विफल करने का आग्रह करता हूं।’’ धनखड़ ने आगे तर्क दिया कि ये जनसांख्यिकीय परिवर्तन चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं, जिससे पिछले कुछ वर्षों में कई क्षेत्रों में ‘गढ़’ बन गए हैं। उन्होंने आग्रह किया, ‘‘हमें अत्यंत सतर्क रहना चाहिए। भारत की प्राचीन जनसांख्यिकीय पवित्रता को बनाए रखने के लिए सभी को एक साथ आना चाहिए।’’ पी परमेश्वरन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सबसे वरिष्ठ प्रचारकों में से एक थे और पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ के पूर्व नेता थे।