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पूर्वांचल में केले की पहली टिश्यू कल्चर लैब कौशांबी में स्ज़्थापित

 

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के कौशांबी में नवीन तकनीकी पर आधारित टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना की गई है। इससे किसानों को काफी सहूलियत मिलेगी। केले की बागवानी को लेकर प्रयागराज मंडल के किसानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है । मंडल के कौशांबी जिले में इस समय 1500 किसान केले की बागवानी कर रहे हैं।

उपनिदेशक उद्यान कृष्ण मोहन चौधरी बताते हैं कि जनपद में 1700 हेक्टेयर में किसान केले की बागवानी कर रहे हैं । इन केला पैदा करने वाले किसानों की सबसे बड़ी समस्या टिश्यू कल्चर से तैयार की गई पौध की है। महाराष्ट्र ,पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों से केले की टिश्यू कल्चर वाली पौध यहां पहुंचने में कई बार विलंब होने की वजह से किसने की लाखों की फसल बर्बाद हो जाती है।

इसे देखते हुए कौशांबी के चिल्ला सहवाजी गांव में नवीन तकनीकी पर आधारित टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना की गई है। प्रयागराज मंडल की नहीं, बल्कि पूर्वांचल के केला उत्पादक जिलों में केले की टिशु कल्चर लैब की मांग लंबे समय से की जा रही थी। प्रयागराज मंडल उप निदेशक उद्यान कृष्ण मोहन चौधरी का कहना है कि एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजनान्तर्गत, जनपद-कौशाम्बी में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के सहयोग से चिल्ला सहवाजी गांव में टिश्यू कल्चर केला लैब का सत्यापन उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की टीम द्वारा कर लिया गया है।

इस लैब की स्थापना से जनपद कौशाम्बी के साथ-साथ निकटवर्ती जनपदों के केला उत्पादक किसानों को उच्च गुणवत्ता के टिश्यू कल्चर केला पौध समय से उपलब्ध हो सकेगा। इससे एक तरफ जहां केला उत्पादन में वृद्धि होगी वही दूसरी तरफ किसानों के आय में भी बढ़ोतरी होगी। इस लैब में लगभग 15 लाख टिश्यू कल्चर के पौधे तैयार करने हेतु तैयार है, जो अगले वर्ष में हार्डेनिंग के उपरांंत पूरी तरह से तैयार केला पौध कृषकों को दिये जाने योग्य हो जाएंगे।

लैब की लागत 283.81 लाख है। इस पर उद्यान विभाग द्वारा 100 लाख का अनुदान दिया गया है । यह पूर्वाचल की केले की पहली टिश्यू कल्चर लैब है, जिसमे आने वाले समय में लगभग 30 लाख टिश्यूकल्चर केला के पौधे प्रतिवर्ष तैयार किये जायेंगे। यह अत्याधुनिक लैब केला पैदा करने वाले किसानों के लिए कई तरह से लाभ देने जा रही है। मूरत गंज के केला पैदा करने वाले समद बताते हैं कि अभी तक इस क्षेत्र में केले के टिशू कल्चर पौधे बाहर से मगाने पड़ते थे।

इसमें ट्रांसपोर्टेशन की वजह से कीमत ज्यादा लगती थी लेकिन अब स्थानीय उपलब्धता होने की वजह से कम कीमत में ही उन्हें टिश्यू कल्चर की पौध मिल जाएगी। सैयद सरावां के केला पैदा करने वाले किसान सुरेश बिंद बताते हैं कि बाहर से आने वाली केले की पौध के यहां पहुंचने में कई बार विलंब हो जाता था, जिससे उनकी फसल खराब हो जाती थी। इसके अलावा बाहर से आने वाली टिश्यू कल्चर की पौध में वहां की बीमारियां भी साथ चली आती थी, जो अब स्थानीय टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना से नहीं होगी।

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