नेरवा/नाहन: एक दिसंबर से चूड़धार स्थित शिरगुल देवता मंदिर के कपाट बंद होने के साथ ही चूड़धार यात्र पर भी सुरक्षा की दृष्टि से साढ़े चार महीने के लिए प्रशासनिक प्रतिबंध लग गया है। हर साल एक दिसंबर को चूड़धार में विराजमान शिरगुल देवता मंदिर के कपाट बंद होने के साथ ही अप्रैल माह में बैसाखी पर तक चूड़धार यात्र पर आधिकारिक तौर पर प्रतिबंध लग जाता है। दिसंबर माह में बर्फबारी की संभावनाओं के चलते मंदिर कमेटी प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष उपमंडलाधिकारी चौपाल हेम चंद वर्मा ने चूड़धार यात्र पर प्रतिबंध संबंधी अधिसूचना जारी कर दी है। हेम चंद वर्मा ने कहा कि दिसंबर महीने में चूड़धार में अत्यधिक बर्फबारी के चलते जहां पारा माइनस से नीचे रहता है, वहीं चूड़धार के रास्तों पर यात्र में अत्यधिक जोखिम रहता है।
सर्दियों में चूड़धार में दस से बीस पच्चीस फीट तक बर्फ रहती है एवं इस दौरान वहां पर खाने-पीने एवं रहने की भी कोई व्यवस्था नहीं रहती, लिहाजा इस दौरान चूड़धार की यात्र किसी भी लिहाज से सुरक्षित नहीं है। पूर्व में कई बार कुछ श्रद्धालु अथवा ट्रैकर सर्दियों में चूड़धार की यात्र कर न केवल अपने आप को मुसीबत में डाल चुके हैं अपितु प्रशासन के लिए भी परेशानी का सबब बन चुके हैं। हेम चंद ने समस्त लोगों से आग्रह किया है कि अप्रैल महीने में बैसाखी वाले दिन कपाट खुलने तक चूड़धार की यात्र से परहेज रखें। उन्होंने यात्र प्रतिबंध के दौरान एसडीपीओ चौपाल एवं एसडीपीओ कुपवी को भी चूड़धार की तरफ जाने वाले सभी रास्तों पर कड़ी नजर रखने का आग्रह किया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि यात्र प्रतिबंध के दौरान कोई चोरी छुपे चूड़धार की यात्र करता पाया गया तो उसके खिलाफ नियमों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि अप्रैल से दिसंबर महीने तक इन क्षेत्रों के सैकड़ों लोग रोजाना अपने आराध्य देवता के दर्शनों हेतु पहुंचते हैं। मई से सितंबर तक तो रोजाना चूड़धार पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की तादाद चार से पांच हजार तक रहती है। देव उठनी एकादशी पर छोटे भाई बिजट महाराज के अपने बड़े भाई के साथ मिलन के लिए सरांह से चूड़धार पहुंचने पर चूड़धार में साल का आखिरी दैविक पर्व मनाया जाता है, जिसके बाद चूड़धार चूड़ेश्वर सेवा समिति द्वारा संचालित लंगर और सभी सराय बंद कर दी जाती है तथा ढाबे व होटलों वाले भी अपने घरों को चले जाते हैं। इसके बाद हर साल एक दिसंबर से मंदिर के कपाट बंद होने के साथ ही चूड़धार यात्र पर आधिकारिक तौर पर प्रशासनिक प्रतिबंध लगा दिया जाता है। इसके उपरांत अप्रैल महीने में बैसाखी पर्व पर देवता शिरगुल की विधिवत पूजा अर्चना के बाद मंदिर के कपाट पूजा एवं दर्शनों के लिए खोल दिए जाते हैं तथा मौसम की स्थिति के हिसाब से चूड़धार यात्र शुरू हो जाती है।