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Shimla की मिट्टी में अत्यधिक नमी और अंधाधुंध निर्माण के चलते ढह रहे भवन

शिमलाः हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के भूकंपीय क्षेत्र चार के तहत आने और भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने के कारण हाल में हुई मूसलाधार बारिश के दौरान यहां 100 से अधिक इमारतों को नुकसान हुआ। विशेषज्ञों ने इसके लिए मिट्टी में अत्यधिक नमी, नालों पर निर्माण, रिसाव और पहाड़ियों पर अत्यधिक बोझ को जिम्मेदार ठहराया। मौसम विभाग के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 24 जून को मानसून की शुरुआत के बाद से अब तक 752.1 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है, जबकि जून से सितंबर तक पूरे मानसून मौसम के दौरान औसतन 730 मिलीमीटर बारिश होती है।

शिमला के उपायुक्त आदित्य नेगी ने कहा कि मौजूदा मानसून मौसम में शिमला जिले में बारिश से संबंधित घटनाओं में लगभग 46 लोगों की मौत हुई है और जिले में 1,286 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि 115 से अधिक घर और भवन क्षतिग्रस्त हो गये हैं। शिमला के पुलिस अधीक्षक संजीव कुमार गांधी ने मंगलवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, शिमला के लगभग 50 भवन समेत 100 से अधिक संकटग्रस्त इमारतों को खाली करा दिया गया है।

हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के प्रधान वैज्ञनिक अधिकारी एस.एस. रंधावा ने कहा कि निर्माण, मिट्टी में अत्यधिक नमी, रिसाव और अत्यधिक बोझ शिमला शहर में भूस्खलन के लिए जिम्मेदार प्रतीत होता है। रंधावा को भूस्खलन के कारणों का अध्ययन करने के लिए गठित समिति का समन्वयक नियुक्त किया गया है। उन्होंने शिमला में कृष्णा नगर, फागली और कुछ अन्य भूस्खलन स्थलों का दौरा किया है।

रंधावा ने बताया कि सर्दी में बर्फबारी के मौसम के बाद, गर्मी का मौसम लगभग नहीं आया और तुरंत बारिश का मौसम आ गया, जिससे स्थिति और खराब हो गई क्योंकि मिट्टी में मौजूद नमी सूखने का कोई रास्ता नहीं था। हाल ही में भूस्खलन से शिमला के फागली में पांच और कृष्णा नगर में दो लोगों की मौत हो गई थी, जबकि अकेले शिमला शहर में मरने वालों की कुल संख्या 24 थी। शिमला में समरहिल इलाके में शिव मंदिर के मलबे से 17 शव बरामद किए गए थे।

राज्य के पूर्व मुख्य वास्तुकार नंद किशोर नेगी ने कहा, कि हमने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। वर्तमान स्थिति हमारी सामूहिक विफलता का परिणाम है और हमें इसे संभालने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि पुरानी प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था खत्म हो गई है और नालों पर इमारतें खड़ी हो गई हैं। उन्होंने कहा कि पहले 30 प्रतिशत क्षेत्र में निर्माण थे और 70 प्रतिशत क्षेत्र खाली था, लेकिन अब स्थिति उलट है और नालों में पानी की मात्र वहन क्षमता से अधिक हो गई है। उन्होंने कहा, कि भूस्खलन के कई कारण रहे, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि हम पहाड़ियों पर अंधाधुंध निर्माण नहीं कर सकते और अब समय आ गया है कि हम दो किलोमीटर के निर्माण के बाद एक किलोमीटर के हरित क्षेत्र छोड़ने के मानदंडों का पालन करें जैसा कि विदेश में प्रचलित है।

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