Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

मुख्यमंत्री Sukhwinder Singh Sukhu द्वारा पेश किए गए बजट मे करुणामूलक वर्ग निराश


बता दें पिछले बजट में मुख्यमंत्री द्वारा इन परिवारों के लिए बजट का प्रावधान तो किया गया था,लेकिन वह प्रावधान फाइलों तक ही सीमित रह गया हिमाचल प्रदेश के समस्त करुणामूलक परिवारों मैं सरकार की इस अनदेखी का भारी रोष है। बजट के दूसरे दिन विधानसभा शिमला में समस्त करुणामूलक परिवार जिसमें बहुत सी विधवा महिलाये आश्रित जिसमें लीला गर्ग,मजना देबी, रीता बाली, विद्या शर्मा अनुज शर्मा, सुमन गौतम, मंजू ठाकुर अन्य महिलाएं शामिल थी।

जो नौकरी की आस लेकर मुख्यमंत्री से मिलने आई थी,कि मुख्यमंत्री इनके और इनके बच्चों के लिए नौकरी का प्रावधान करेंगे। लेकिन एक बार फिर से मुख्यमंत्री द्वारा इन्हें आश्वासन देखकर टाल दिया गया। इन महिलाओं द्वारा मुख्यमंत्री के समक्ष रोते हुए भी अपनी व्यथा भी सुनाई लेकिन मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु का दिल नहीं पसीजा।

करुणामूलक संघ के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार मीडिया प्रभारी गगन कुमार मुख्य सलाहकार शशि पाल आईटी सेल गुलशन कुमार हिमाचल प्रदेश के जिला अध्यक्षों ब समस्त करुणा मूलक परिवारों का कहना है। सरकार क्यों इन परिवारों के लिए कोई नीति नही बना रही। एक तो इन परिवारों में अपने घर का सदस्य खोया है।

ऊपर से 20 से 25 सालों से यह परिवार करुणा के आधार पर नौकरी का इंतजार कर रहे हैं मुख्यमंत्री द्वारा हर एक अभिभाषण में कहा जाता है,कि प्रदेश की उन्नति में एक सरकारी कर्मचारी का विशेष योगदान होता है। तो मुख्यमंत्री इन परिवारों की तरफ क्यों नहीं देखते क्या इन लोगों के माता या पिता का कोई योगदान नहीं था। जो सरकार की सेवा करने के दौरान मृत्यु को प्राप्त हो गये।

जब यह विपक्ष में थे तो मरहम लगते थे और जब सत्तापक्ष में आ गये। जख्म दे रहे हैं विधानसभा चुनाबो के समय हर एक जनमंच से इन परिवारों के लिए आवाज उठाई गई और कहा गया कि बिना किसी शर्त से करुणामूलक के लिये नौकरिया बहाल की जाएगी। लेकिन सरकार बनने के पश्चात अब इन परिवारों का मजाक बनाया जा रहा है।

इन परिवारों को एक वोट बैंक का जरिया ही समझा जाता है। मुख्यमंत्री द्वारा कुछ ऐसा प्रावधान लाया जाए जिसमें इन परिवारों को करुणा के आधार पर नौकरी देखकर व्यवस्था का उदाहरण दिया जाए। ताकि यह भी अपना परिवार का पालन पोषण कर सकें और इन परिवारों को दर-दर की ठोकरे ना खानी पड़े।

Exit mobile version