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भक्तों ने लगाया भगवान को 56 भोग का प्रसाद, गोवर्धन पूजन कर की परिक्रमा

जोगिंदर नगर: जन्माष्टमी के पावन पर्व पर चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण के पंचम दिवस पर श्री धाम वृंदावन से पधारे श्रद्धेय पंडित प्रभु दयाल शास्त्री जी महाराज ने बताया कि भगवान का अवतार होता है भगवान का जन्म नहीं होता क्योंकि जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी सुनिश्चित है और भगवान तो अजन्मा है, अजेय है, मायातीत हैं, गुड़ातीत है। इसलिए संसार भगवान को प्रभावित नहीं करता अपितु सारा जगत भगवान से प्रभावित है। समस्त बृजवासियों ने मंगल बधाई देते हुए नंद बाबा के महल में सानंद पूर्वक सच्चिदानंद घन परमात्मा का दर्शन किया। वह सच्चिदानंद परमात्मा बैकुंठ में बैठे-बैठे जब बोर होने लगते हैं तब अपने भक्तों के मध्य आकर लाड प्यार पाने के लिए भक्तों के द्वारा मीठी-मीठी फटकार सुनने के लिए प्रेम के वशीभूत होकर इस धरती पर अवतरित होते हैं। भगवान प्रेम के भूखे हैं। सारा संसार जिससे भयभीत होता है आज भगवान स्वयं भैया जसोदा की फटकार सुनकर भयभीत हो रहे हैं। यही तो प्रेम है। प्रेम का मार्ग बड़ा सूक्ष्म होता है।

“प्रेम गली अति सांकरी तांबे दो न समांय”

जहां प्रेम है वहां काम नहीं होता और जहां कामनाएं हैं वहां प्रेम नहीं होता। प्रेम सदैव अंतरंग की स्थिति है। प्रेम दिखाया नहीं जाता प्रेम अनुभव की वस्तु है। उसे केवल अनुभव किया जा सकता है। जैसे कोई मीठा खाता है तो मीठे का केवल अनुभव करता है, किसी ने पूछा कि मीठा कैसा होता है तो व्यक्ति यही कहेगा वह तो केवल मीठा है। परंतु मीठे का स्वाद वर्णन नहीं किया जा सकता उसका केवल अनुभव किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार से प्रेम दिखाने की वस्तु नहीं है प्रेम छुपाने की वस्तु होती है। प्रेम सार्वजनिक नहीं होता प्रेम अंतरंग होता है। आंखों से प्रवेश करता है हृदय में विराजमान रहता है। प्रेम की आंखें प्रेम की वाणी प्रेम की भाषा प्रेम का व्यवहार प्रेम का स्वरूप जगत से भिन्न होता है। भगवान से प्रेम करने वाले की संसार में पागलों की स्थिति उसकी होती है। जो प्रेमी होता है वह प्रेमी प्रेम में डूब जाता है। डूबने वाले व्यक्ति से कोई पूछे तो वह बाहरी ज्ञान को बता नहीं सकता। इसलिए प्रेम सागर में जो डूबा है वही दूसरे को डूबा सकता है और वही उसका स्वरूप ज्ञान करा सकता है। भगवान प्रेम के वसी भूत होकर ब्रज मंडल में आकर नंद बाबा मैया यशोदा अनेक ग्वालों के प्रेम को पाकर अपने आप को भी धन्य समझते हैं। अनेक लीलाएं प्रभु ने करी यमुना मैया का भी शोध किया, काली नाग को बाहर निकाल कर गाएं चराए। गोवर्धन नाथ भगवान को कनिष्ठका उंगली पर धारण करके प्रभु का नाम गिरधारी पड़ा। 7 दिन 7 रात्रि पर्यंत प्रभु ने गोवर्धन पर्वत को धारण करके अपने समस्त बृजवासियों को आनंद दिए।भागवत कथा के दौरान भक्तों द्वारा भगवान श्री कृष्ण के समक्ष 56 भोग का श्रृंगार किया गया।इस दौरान भक्तों द्वारा गोवर्धन पूजा भी की गई। व्यास पीठ पर विराजमान पंडित प्रभु दयाल शास्त्री ने बताया की रविवार को कथा में भगवान के अनेक लीलाओं का वर्णन जैसे चीर हरण लीला है रासलीला का वर्णन करते हुए द्वारकाधीश श्री कृष्ण और रुक्मणी का विवाह संपन्न होगा।

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