Kamrunag मंदिर के कपाट विधि-विधान से एक माह के लिए हुए बंद

मंडी : बड़ादेव कमरूनाग जहां मंडी रियासत के पुज्य देवता हैं। वहीं पर सुकेत रियासत में देव कमरुदेव की मान्यता रियासतकाल से रही है, जिसके चलते दोनों रियासातों में देवता के अलग भंडार यानी काठियां है। सुकेत के मझोठी रोहांडा स्थित कमरूदेव मंदिर के कपाट विधि विधान से एक माह के लिए बंद हो गए।.

मंडी : बड़ादेव कमरूनाग जहां मंडी रियासत के पुज्य देवता हैं। वहीं पर सुकेत रियासत में देव कमरुदेव की मान्यता रियासतकाल से रही है, जिसके चलते दोनों रियासातों में देवता के अलग भंडार यानी काठियां है। सुकेत के मझोठी रोहांडा स्थित कमरूदेव मंदिर के कपाट विधि विधान से एक माह के लिए बंद हो गए। इस अवसर पर रोहांडा-पांणा-करसोग-सुंदर नगर मंडी, रामपुर आदि स्थानों से आए श्रद्धालुओं ने मंदिर में आकर आशीर्वाद प्राप्त किया। सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डॉक्टर हिमेंद्र बाली का कहना है कि मंडी जिले के अंतर्गत पूर्ववर्ती सुकेत रियासत महाकाव्य काल में सुकुट नाम से विख्यात महाभारत के परम योद्धा र}यक्ष महाभारत में वर्णित हैं। हालांकि र}यक्ष से जुड़ा स्थानीय कथानक घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक से भी साम्य रखता है। करसोग-मण्डी मार्ग पर रोहांडा के समीप मझोठी में पूर्ववर्ती सुकेत क्षेत्र में महाभारत के महान चरित्र कमरूनाग का मंदिर स्थित है।

कमरूनाग मंडी जिले में बड़ादेओ देव शिरोमणि नाम से विख्यात है। स्थानीय परम्परा के अनुसार कमरूनाग महाभारत के परम यौद्धा थे। कमरूनाग के गूर मुनी लाल के अनुसार कमरूनाग जब महाभारत युद्ध में भाग लेने के लिए जा रहे थे तो मार्ग में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण रूप धरकर कमरूनाग से रणभूमि कुरुक्षेत्र जाने का प्रयोजन पूछा। परम समर्थ कनरूनाग केवल तीन वाण तरकश में लिए रणभूमि की ओर चले जा रहे थे। श्रीकृष्ण ने उनसे पूछाआप इस महान युद्ध में अपने तरकश में केवल तीन वाण लेकर चले जा रहे हो। कमरूनाग र}यक्ष ने गर्वोक्ति में कहा-यूं तो मेरा एक वाण ही महाभारत युद्ध के लिए काफी है। फिर भी जो पक्ष पराजय की ओर उन्मुख होगा उस पक्ष को अपने अक्षय आयुधों से विजय की ओर ले जाऊंगा।

श्रीकृष्ण ने कमरूनाग के अतुल सामर्थ्य को जान लिया। उन्होने वरदान में कमरूनाग का सिर मांगा। जिसे दानशील योद्धा ने सहर्ष अर्पित कर दिया। कमरूनाग के आग्रह को स्वीकार कर उनके सिर को बांस के डंड्डे के शीर्ष पर बान्ध कर महाभारत युद्ध के अठारह दिनों तक रखा गया। युद्धोपरांत श्रीकृष्ण के आग्रह पर पांच पाण्डवों ने कमरूनाग के सिर को पश्चिमी हिमालय के इस मध्योत्तर खंड में रोहांडा के शीर्ष पर सरनाऊली में प्रतिष्ठित किया। मझोठी मंदिर समिति के सचिव दुनीचंद का कहना है कि कमरूनाग द्वारा अपने अतुल शौर्य का बलिदान देने के महत् कार्य की स्मृति में श्रीकृष्ण ने सरनाऊली में प्रतिष्ठित कमरूनाग के पार्थिव विग्रह में अपने चतुभरुज रूप को कुछ समय के लिए आरोपित किया। कमरूनाग के मंदिर के सामने विशाल झील में ये स्वम् नाग रुप में विराजित हुए।अयही कारण है कि सरनाऊली में कमरूनाग की इस पवित्र झील में अर्पित द्रव्य दान को कोई भी लौकिक प्रयोग में लाने का दुस्साहस नहीं करता है।

सरानाऊली में कमरूनाग का पार्थिव विग्रह से सुसज्जित श्रीविग्रह का पावन झील का आधा-आधा भाग मंडी व सुकेत रियासत में है। हर तीन वर्ष बाद झील के अपने अपने भाग की सफाई का कार्य सुकेत व मंडी रियासत के लोग आज भी परंपरागत ढंग से करते हैं। संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि रोहांडा के समीप करसोग की ओर मझोठी(रोहांडा) में स्थित कमरूनाग सुकेत रियासत क्षेत्र पर आधारित है। यहां कमरूनाग का धात्विक विग्रह सूर्यपंख में अपने वास्तविक स्वरूप में प्रतिष्ठित है। जबकि मंडी रियासत के कमरूनाग के चलायमान सूर्यपंख विग्रह में ये चतुभरुज विष्णुरूप व शेषनाग रुप में विराजित है। मझोठी में प्रतिष्ठित कमरूनाग चलायमान विग्रह में कमरूनाग के साथ सूर्यपंख में पांचों पांडवों के विग्रह विराजित हैं। चूंकि कमरूनाग पांडवों के ठाकुर माने जाते हैं।

अत: सूर्यपंख पर नाग के साथ पाण्डवों की स्थापना पाण्डवों द्वारा इस क्षेत्र में नाग की प्रतिष्ठा को प्रमाणित करता है। मझोठी में कमरूनाग के मंदिर के समीप पांडवों की देवी का मंदिर भी प्रतिष्ठित है। कमरूनाग सुन्दरनगर में आयोजित सुकेत मेले में रियासती काल में मेले के शुभारंभ से सम्मिलित होते है जिसका आरंभ चैत्र नवरात्र से होता है। मंदिर के सचिव दुनीचंद कहना है कि मझोठी में नाग का प्राकट्य मंदिर के स्थान पर कुशा घास से हुआ। जबकि मंडी के क्षेत्र में मान्यता है कि कमरूनाग का प्राकट्य कुमर नामक झाड़ी से हुआ। कमरूनाग सुकेत व मंडी रियासत क्षेत्र के सशक्त देव हैं। मंडी के महाशिवरात्रि पर्व का शुभारंभ भी कमरूनाग के आगमन से होता है।

सुकेत रियासत की ऐतिहासिक नगरी पांगणा के सुरेश शर्मा, पांगणा पंचायत के उपप्रधान सुरेश कौशल, ट्रांसपोर्टर जितेंद्र शर्मा, श्याम लाल शर्मा, रामपुर के वरिष्ठ समाज सेवी व अधिवक्ता विनय शर्मा, सुंदरनगर के सुरेंद्र शर्मा, मंडी के प्रणव शर्मा, सराज की शाला पंचायत के पूर्व प्रधान राजकुमार जमवाल, देवधार के योगिंद्र शर्मा, करसोग नगर पंचायत सदस्य नरसिंह दत्त शर्मा, वरिष्ठ समाज सेवी धन्नाराम लाल महाजन, छायाकार खेमराज गुप्ता, रोहांडा पंचायत के समाजसेवी दिलाया ठाकुर, गुलजारी लाल, कमरूनाग मंदिर समिति के प्रधान प्रेमसिंह, सदस्य हेमसिंह, वाद्यवृंदों सहित अनेकों महिला-पुरुष श्रद्धालु उपस्थित थे।

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