शिमला : प्रदेश उच्च न्यायालय ने पोक्सो से जुड़े मामलों में पुलिस महानिदेशक को आदेश दिए हैं कि वह जांच अधिकारियों को पीडिता की उम्र बाबत ठोस साक्ष्य जुटाकर कोर्ट के समक्ष पेश करने के निर्देश जारी करे। ताकि साक्ष्य के अभाव में दोषी बेबजह बरी होने का लाभ न उठा सके।
न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर व न्यायाधीश राकेश कैंथला की खंडपीठ ने पॉक्सो से जुडे एक मामले में पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिए कि वह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों के अंतर्गत किशोर न्याय अधिनियम , 2015 की धारा 94 के अनुसार पीड़िता की उम्र के संबंध में प्रमाण पत्न या स्कूल से जन्मतिथि प्रमाण पत्न साक्ष्य एकत्न करने के लिए जांच अधिकारी को आवश्यक निर्देश करें।
यदि उनमें से कोई भी उपलब्ध नहीं हैए तो ग्राम पंचायत नगर निगम ,नगरपालिका प्राधिकारी से जन्म प्रमाण पत्न प्राप्त करें और यदि वहां भी उपलब्ध नहीं हैं , तो उम्र के संबंध में चिकित्सा साक्ष्य हासिल करें। यदि मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्न , पीड़िता के स्कूल से जन्म प्रमाण पत्न या ग्राम पंचायत या नगर परिषद ,निगम ,प्राधिकरण से जन्म प्रमाण पत्न उपलब्ध नहीं हैए तो जांच अधिकारी अपने द्वारा प्रस्तुत आरोप पत्न में इस तथ्य को विशेष रूप से दर्ज करे।
कोर्ट ने इसके अलावा अभियोजन निदेशक को आदेश दिए कि वह भी अपने पिब्लक प्रोसिक्यूटर को निर्देश जारी करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुकदमा शुरू होने से पहले किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 94 की अनुपालना की गई है। कोर्ट ने खेद जताया कि जांच अधिकारी द्वारा प्रासंगिक साक्ष्य एकत्न करने में विफलता के कारण वर्तमान मामला विफल हो गया।
पीड़िता ने कोर्ट के समक्ष दी अपनी गवाही में बताया था कि घटना के समय उसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक थी। जिस स्कूल में पीड़िता ने पहली बार पढ़ाई की थी , उस स्कूल से प्रमाण पत्न के अभाव में पीड़िता की उम्र का सबसे अच्छा दस्तावेजी सबूत उपलब्ध नहीं है और यह नहीं माना जा सकता है कि घटना की तारीख को वह नाबालिग थी। चूंकि उसने रिश्ते के लिए सहमति दे दी थी।
लिहाजा आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध करने का कोई मामला नहीं बनता है। कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक व अभियोजन निर्देशक को आदेश जारी किए हैं कि वह न्यायालय के आदेशों की अनुपालना 31 दिसंबर 2024 तक करें।