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Surajkund मेले में लोग चख रहे हिमाचली गुच्छी का स्वाद, पर्वतीय इलाकों में होती है इसकी पैदावर

शिमला : हरियाणा के फरीदाबाद में अरावलीकी वादियों में चल रहे 36वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले के फूड स्टलों पर इस बार बड़ी संख्या में लोग पहुंच कर हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्रों में पैदा होने वाली पहाड़ी गुच्छी स्वाद चख रहे हैं। परंपरा, विरासत और संस्कृति की त्रिवेणी के रूप में विश्वभर में प्रशिद्घ इस मेले में पहली बार भारतीय राज्यों के अतिरिक्त शंघाई सहयोग संगठन के 40 देश हिस्सा ले रहे हैं। कुल्लू के उद्यमी आयुष सूद लारा कुल्लू मनाली, धर्मशाला, चंबा, मंडी और कांगड़ा के ऊंचे पर्वतीय स्थलों पर तेज बिजली की चमक से प्रतिक रूप में पैदा हो रही पहाड़ी गुच्छी को एकत्र करके संगठित रूप से हिली बास्केट नाम के बिशिष्ट ब्रांड के रूप में बेचने की पहल की है, ताकि राष्ट्रीय मार्कीट में पहाड़ी गुच्छी के स्वाद, सुगंध के साथ ही सेहत के लिए फायदेमंद को भी उजागर किया जा सके। जोकि अभी तक कामयाब दिख रही है।

इस गुच्छी केप्लांट आधारित फूड, विटामिन डी और फैट कम होने की वजह से दिल की सेहत के लिए उपयोगी मानी जाती है। इसका सेवन कोलैस्ट्रोल को कम करके शरीर में ऊर्जा के संचार को बढ़ाता है। कुल्लू के उद्यमी आयुष सूद का कहना है की जंगली गुच्छी हिमालय क्षत्रों के पर्वतीय इलाकों पर सामान्यता समुद्र तल से 2500 मीटर से 3500 मीटर ऊंचाई पर प्रतिक रूप से उगती हैं।

आसमानी बिजली के चमकने से गुच्छी यकायक जमीन से बाहर आती है और आसमानी बिजली गुच्छी की उपज और स्वाद में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। उनका कहना है कि सामान्यता यह सब्जी बसन्त ऋतू में प्रतिक रूप में जंगलों में उगती है और जंगली गुच्छी को जंगलों से स्थानीय लोग इक्कटठा करते हैं। इस समय प्रदेश में लगभग 20 क्विंटल गुच्छी की पैदावार रिकार्ड की जाती है। कुल्लू जिला में औसतन चार क्विंटल पहाड़ी गुच्छी की पैदावार का अनुमान लगाया गया है।

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