पतलीकूहल : वीरवार रात लगभग 7:15 बजे कंचनजंगा पॉवर प्रोजेक्ट की लाइन में स्पाकिर्ंग होने से काईंन गांव के साथ लगता जंगल धूं धूं कर जल उठा। देखते ही देखते इस आग ने विकराल रूप धारण कर लिया और पूरी रात जंगल जलता रहा। प्रत्यक्षदर्शी सुरेश और सुदर्शन ने बताया कि जब वे शाम को बगीचे का काम करके वापिस घर आ रहे थे तो उन्हें अचानक प्रोजेक्ट वालों की तारों में धमाके के साथ आग निकलती दिखी।
घर पहुँचने पर उन्हें उसी स्थान पर भयंकर आग का मंजर देखा तो इसकी जानकारी प्रत्यक्षदर्शियों ने प्रोजेक्ट मैनेजर आशुतोष को दूरभाष पर दी। परंतु खेद की बात है कि प्रोजेक्ट मैनेजर को आग लगने की जानकारी देने के बाद भी उन्होंने आग को बुझाने के प्रयास नहीं किया और लाइन में स्पाकिर्ंग से आग लगने से अपना पल्ला झाड़ दिया और किसी प्रकार की सूचना अग्निशमन विभाग को भी नहीं दी।
देर रात लगभग 10 बजे मौके पर पहुंच कर स्थानीय युवकों भूपेंद्र, सुरेंद्र, पोतम, वंश, सचिन ने आग को बुझाने की कोशिश की गई परंतु आग ने भयंकर रूप धारण कर लिया था जिस कारण उन्हें आग पर काबू पाने में सफलता नहीं मिली। इस आग से सुबह पूरे क्षेत्र में धुंआ ही धुंआ छाया रहा। सूत्रों के अनुसार, प्रोजेक्ट की बिजली को इस ट्रांसमिशन लाइन के माध्यम से फोजल स्थित हिमाचल प्रदेश पावर ट्रांसमिशन के सब स्टेशन को भेजा जाता है। फोजल सब स्टेशन के सहायक अभियन्ता अक्षय राणा ने पुष्टि की है कि कंचनजंगा पॉवर प्रोजेक्ट की ट्रांसमिशन लाइन में शाम को 7:12 पर ट्रिपिंग आई थी।
पिछले कुछ वर्षों से नवंबर और दिसंबर में कुल्लू जिला के अधिकांश जंगलों में हर वर्ष आग लगने से अमूल्य वन संपदा को क्षति पहुंच रही है। वन विभाग के पास जंगलों की आग को रोकने का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है इसलिए आग लगने की घटनाओं में कमी के स्थान पर बढ़ोतरी हो रही है। बड़ागढ़ और दवाड़ा का जंगल हर वर्ष आग की चपेट में आ जाता है। स्पाकिर्ंग के कारण आग लगने का यह कोई पहला मौका नहीं है इससे पहले भी कई बार जंगल में आग लगने की वारदात हो चुकी है।
कुछ वर्ष पूर्व तो इनकी लाइन में अचानक लोड़ अधिक गुजरने से तराशी गाँव को विद्युत आपूर्ति करने वाली लाइन में भी लोड बढ़ गया। इस हाई वोल्टेज लाइन को 11 मीटर के पोल पर ले जाया गया है और कई स्थानों पर तो तारों की दूरी जमीन से बहुत ही कम है जिससे हमेशा खतरा बना रहता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि क्या इतने अधिक करंट वाली लाइन को मात्र 11 मीटर के पोल पर से गुजरा जा सकता है इसकी भी जाँच होनी चाहिए। पोल पर तारों के बीच की दूरी काफी कम है जिससे स्पाकिर्ंग होती रहती है और जंगल में आग लग जाती है।
जबकि इसके साथ ही विद्युत विभाग की ट्रांसमिशन की लाइन बिछी हुई है इसमें कभी भी स्पाकिर्ंग नहीं होती क्यूंकि इस लाइन को टावर से ले जाया गया है। इस वारे में जब कंचनजंगा के अधिकारी आशुतोष से बात की गई तो कोई संतुष्ट बयान नहीं दे पाए और कहा कि बिजली की लाइन में शॉर्ट सर्किट पेड़ की टहनी गिरने या जंगली जानवरों के कारण होता है।
स्थानीय लोगों ने मांग की है कि इस प्रोजेक्ट लाइन की तारों को सही मापदंड व ऊंचाई पर लगाया जाए ताकि घाटी में आगजनी की घटना कम हो उधर बनपरिक्षेत्र अधिकारी टीटू ने बताया कि आगजनी की घटना की सूचना मिल चुकी है। इस की छानवींन कर कड़ी कार्यवाही अमल में लाई जाएगी।