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निरमंड की बूढ़ी दिवाली में वृत्रासुर और इंद्र के बीच कल होगा महायुद्ध

रामपुर बुशहर (मीनाक्षी) : जिला कुल्लू के अल्प-ज्ञात आउटर सिराज क्षेत्र में सतलुज घाटी के सामने और शिमला से लगभग 150 किमी और रामपुर से 17 किमी की दूरी पर एक विशाल गांव निरमंड वसा है। यह गांव प्रारंभिक वैदिक काल से अस्तित्व में है, जो इसे भारत की सबसे पुरानी ग्रामीण बस्तियों में से एक है। 6वीं और 7वीं शताब्दी से यहां कई प्राचीन पत्थर और लकड़ी के मंदिर निरमंड के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखते है। इसलिए निरमंड को अक्सर “हिमालय की काशी” कहा जाता है।

यह गांव “छोटी काशी” के नाम से विख्यात है। यहां बूढ़ी दिवाली (दियाउड़ी) पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बता दें कि कई क्षेत्रों में बूढ़ी दिवाली पर्व का इतिहास राजा बलि के इतिहास से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन निरमंड में जो बूढ़ी दिवाली का पर्व मनाया जाता है। इसे लेकर यहां मान्यता है कि निरमंड की बूढ़ी दिवाली का जिक्र ऋग्वेद में भी आता है। पूर्व काल में जब वृतासुर ने इंद्र की गद्दी को हासिल करने के लिए मन में विचार किया तो अपनी संपूर्ण शक्तियां और सेना के साथ इंद्र को परास्त करने की योजना बनाई थी। इसके बाद एक बेहद प्रयलंकारी युद्ध दानवों और देवताओं के बीच हुआ था।

बूढ़ी दिवाली का संबंध सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद में एक घटना का उल्लेख है कि इंद्र और वृतासुर के बीच युद्ध का वर्णन है। अग्नि पर इंद्र का और जल पर वृतासुर का नियंत्रण था परंतु वृतासुर अग्नि पर भी अपना नियंत्रण करना चाहता था इस कारण इंद्र और वृतासुर के बीच युद्ध हुआ जिसका प्रदर्शन यहां रात की बूढ़ी दिवाली में किया जाता है।

नगर पंचायत निरमंड के उपाध्यक्ष विकास शर्मा, गुलशन शर्मा का कहना है कि इस परंपरा का आज भी निरमंड में बूढ़ी दिवाली पर्व के रूप में निर्वहन किया जाता है। 12 दिसंबर की रात को निरमंड के दशनामी जून अखाड़े में अग्नि को प्रज्जवलित किया जाएगा। इसे देवताओं के राजा इंद्र का प्रतीक माना जाता है। इस अग्नि के चारों ओर क्षेत्र के गढ़ के लोगों का एक सुरक्षा चक्र बनाया जाता है जिसे देवताओं का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद सुबह चार बजे दूसरे गढ़ों के लोग (कथांडा) से यहां आकर इस घेरे की सुरक्षा में खड़े लोगों के साथ युद्ध की परंपरा का निर्वहन करते हैं। यहां एक विशालकाय रस्से का बांढ बनाकर पारंपरिक झलक देखने को मिलेगी। कहते हैं कि वृतासुर सांप के वेश में इंद्र के साथ युद्ध करने आया था। उस रस्से को वृतासुर का नाम दिया जाता है। निरमंड में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसका यहां के लोग आज भी बखूबी निर्वहन करते हैं।

विकास शर्मा का कहना है कि ऐतिहासिक बूढ़ी दिवाली (दियाउड़ी) पर मंगलवार को पारंपरिक रस्मों को अदा किया जाएगा, जबकि दूसरे दिन रामलीला मैदान ,जिसको यहां की बोली में (शनाया) कहते हैं, यहां नंगे पैर के साथ यहां के लोग एक विशाल नृत्य करते हैं। इसकी विशेष झलक देखने को मिलेगी। उन्होंने बताया कि 13 दिसंबर को मुख्य संसदीय सचिव सुंदर सिंह ठाकुर इस पर्व का विधिवत शुभारंभ करेंगे। 15 दिसंबर को लोक निर्माण मंत्री विक्रमदित्य सिंह बूढ़ी दिवाली पर्व का समापन करेंगे। इस दौरान महिला मंडलों की रस्साकशी प्रतियोगिता करवाई जायेगी। इसके साथ ही स्कूल कॉलेज के छात्र_ छात्राएं रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुत करेंगे। रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्टार कलाकार अनुज शर्मा, कुलदीप शर्मा, विक्की चौहान धमाल मचाएंगे।

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