Kullu के नग्गर में है दुनिया के महान पेंटर Roerich की Art Gallery, कलाप्रेमियों की बनी पहली पसंद

कुल्लूः खूबसूरत कुल्लू घाटी कलाप्रेमियों की पहली पसंद रही है। दशकों पहले से कलाप्रेमियों ने किया है कुल्लु का रुख और यहां बनाया है अपनी कला का आशियाना। कुल्लू के नग्गर में है दुनिया के महान पेंटर रॉरिक की आर्ट गैलरी। आज भी रॉरिक की इस आर्ट गैलरी में आते है कई कलाप्रेमी। अपने हूनर.

कुल्लूः खूबसूरत कुल्लू घाटी कलाप्रेमियों की पहली पसंद रही है। दशकों पहले से कलाप्रेमियों ने किया है कुल्लु का रुख और यहां बनाया है अपनी कला का आशियाना। कुल्लू के नग्गर में है दुनिया के महान पेंटर रॉरिक की आर्ट गैलरी। आज भी रॉरिक की इस आर्ट गैलरी में आते है कई कलाप्रेमी। अपने हूनर को दर्शाने के लिए नए कलाकार यहां प्रदर्शनियां लगाते है। कुल्लु के इतिहास में कला को बढ़ाने में भी रॉरिक की एक बड़ी भूमिका रही है। नग्गर घाटी से कई सारे धार्मिक और कलात्मक किस्से जुड़े है।

कुल्लू मनाली के बीच में बसा एक खुबसूरत गाव नग्गर अपनी धार्मिक मान्यताओं और खुबसूरत वादियों के साथ-साथ यहां की प्राचीन धरोहर, यानि खूबसूरत आर्ट गैलरी रोरिक गैलरी के लिए भी बेहद मशहूर है। नग्गर घाटी पहले से ही कलाप्रेमियों की एक पसंद रही है। इसीलिए निकोलस रोरिक ने भी 1927 में नग्गर आगर यहां की खुबसुरात वादियों से अपनी पेंटिंग के द्वारा अपने कैनवास में उतरा और फिर कला की इस धरोहर को लेकर यही बस गए। नग्गर गॉव में निकोलस रोरिक और उनके परिवार ने अपनी कला से संजोया और न सिर्फ खुबसूरत चित्रों को बनाकर अपनी आर्ट गैलरी में रखा बल्कि यहां के आसपास छिपी पुरानी धरोहरों को भी खोज कर संजोकर आने वाले पीढियों के लिए सुरक्षित रखा है।

रोरिक आर्ट गैलरी से कुछ नीचे जाकर स्तेवोस्लाव और उनकी पत्नी एवं मशहूर भारतीय अदाकारा देविका रानी को समर्पित एक म्यूजियम बनाया गया है, जिसमें स्तेवोस्लाव द्वारा बनाए कई पोट्रेट, उनकी चीजे और देविका रानी के कई सामान मौजूद है। इससे कुछ दूर नीचे जाकर ही निकोलस रोरिक की पसंदीदा जगह पर ही उनकी समाधी बनाई गई है। कहा जाता है की निकोलस रोरिक हिन्दू धर्म से बेहद प्रभावित थे जिसके चलते उनके पार्थिव शरीर को जलाया गया था और बाद में घर के सबसे पसंदीदा कोने में उनकी समाधी बनाई गयी है। रोरिक आर्ट गैलरी की इस जगह पर हर जगह जहां कला की खूबसूरती दिखती है वहीं प्रकृति के करीब होने का एहसास भी साफ झलकता है।

निकोलस रोरिक ने न सिर्फ कला के क्षेत्र में लोगो को एक महान कम दिया बल्कि उन्होंने आसपास के क्षेत्रो से बचाकर यह की लूप होती पुरात्व कला को भी संजोया। रोरिक एस्टेट के दुसरे कोने में उरुस्वती नाम का एक म्यूजियम बनाया गया है। जहां हिमाचल की प्राचीन धरोहरों, मोहरों और कई तरह की कलात्न्मक चीजों को संजोया गया है। निकोलस रोरिक ने पत्थर पर नकाशी की गई कई पत्थरों को लाकर यहां रख दिया, जो नग्गर गांव के पास ही खुदाई करके मिले थे। वहीं यहां की पुरानी नक्काशी के नमूने या अखंडित हो चुकी मूर्तियों को , जिन्हें फेंक दिया जाता था उन्हें वह ले आते और इस खुबसूरत पुरात्व कला को आने वाली पीढियों के लिए संजोकर रख लिया करते थे। इसी तरह उरुस्वती म्यूजियम में तरह तरहे की पुराणी मूर्तियां , धरोहरे , पेंटिग्स और हिमचल के कोने कोने को ददर्शाते बाध्य यत्र भी रखे गए है, जो हिमचाल की खूबसूरती और कल्चर को समझने के लिए बेहद मददगार है।

कौन थे निकोलस रोरिक?

निकोलस रोरिक रशिया से आए हुए न सिर्फ एक महान चित्रकार बल्कि एक फिलोसोफर, पुरात्वविद थे, जिन्होंने न सिर्फ नग्गर और हिमाचल के खुबसूरत वादियों को अपने कैनवास मे उतारा बल्कि यहाँ की प्राचीन कला संस्कृति को भी संजो कर रखा। उनके बेटे स्तेवोस्लाव रोरिक ने 1967 में अपने पिता औरअपने द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स, पोर्ट्रेट्स और कीमती चीजों को संजोकर इस रोरिच्क म्यूजियम की शुरुआत की और अब इसे रशिया और इंडिया के लोग मिलकर सम्भालते है और ये कला प्रेमिओ के लिए एक खुबसूरत जगह है।

रोरिक आर्ट म्यूजियम

रोरिक आर्ट गैलरी करीब 200 बीघा जगह में हैं। जहां अलग-अलग म्यूजियम बनाए गए है और अलग-अलग तरह की कलात्मक चीजों को संजोया गया है। रोरिक आर्ट गैलरी, निकोलस रोरिक के घर यानि रोरिक हाउस में ही बनाई गई है, जहां निकोलस रोरिक की तरह तरह की पेंटिंग्स को रखा गया है। साथ ही यहाँ निकोलस रोरिक और उनके परिवार की चीजों को भी बंद कमरों में उसी तरह रखा गया है जैसे उनके समय में हुआ करती थी। साथ ही उनकी विंटेज कार को भी संजोकर रखा गया है। हालांकि अब निकोलस रोरिक और उनके परिबार के इस घर के अंदर जाने की अनुमति किसी को नहीं पर घर की खिडकियों से स्न्धेर देख रोरिक परिवार के रहन सहन को महसूस जरुर किया जा सकता है। इस घर के हर कोने हर जगह सिर्फ और सिर्फ कला ही झलकती है। रोरिक हाउस के बहार ही एक पेड़ के नीचे कई तरह के पत्थर की मुर्तियां राखी गई है। कहा जाता है ये सभी मूर्तियां निकोलस रोरिक अलग अलग जगह से लेकर आगे थे | गुगा देवता की ये सुब मूर्तियां रोरिक ने इकठी की थी। कहा जाता है की निकोलस रोर्रिक ही हिन्दू, बुद्धिस्ट जैसे कई धर्मो में रूचि थी और वो इन धर्मो को बेहद मानते थे।

इंडियन क्यूरेटर –

म्यूजियम के भारतीय क्यूरेटर का कहना है की निकोलस रोरिक ने न सिर्फ यहाँ कला को बढ़ावा दिया है बल्कि यहाँ के पुरात्व संस्कृति को भी संजोने में एक एहम भूमिका निभाई है। साथ ही निकोलस रोरिक के कारण ही नग्गर को भी एक नयी पहचान मिली है और अब अलग-अलग जगह से कला प्रेमी यहाँ आते है और अपनी कला की प्रदर्शनिया भी लगाते है। रोरिक आर्ट गैलरी में आने वाले सभी लोगो का कहना है की इस खुबसूरत जगह पर आकर उन्हें हिमाचल का नेचर और कला का एहसास होता है और निकोलस रोरिक की इस गैलरी में सभी चीजों को बेहद ही खुबसूरत तरह से रखा गया है। यहाँ आने वाले लोग इस तरह इन कला को देखकर बेहद सुकून महसूस करते है।

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