नई दिल्ली। राज्यसभा में सदन के नेता जगत प्रकाश नड्डा ने मंगलवार को कहा कि भारतीय संविधान गहन चिंतन- मनन , मंथन और गंभीर विचार विमर्श का परिणाम है। नड्डा ने सदन में ‘भारतीय संविधान के 75 वर्ष की गौरवपूर्ण यात्रा’ की चर्चा फिर शुरू करते हुए कहा कि भारतीय संविधान नये देश का नहीं था, बल्कि यह पुरातन संस्कृति वाले देश का संविधान है। संविधान सभा के सदस्य इस तथ्य को भली-भांति जानते थे। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान तमाम कठिनाइयों और मुसीबतों से निकलने की प्रेरणा देता है। संविधान में भारतीय संस्कृति के प्रतीकों की छाप है।
उन्होंने कहा कि बुरे तत्व भी प्रारंभ से ही संविधान से इतर काम करने लगे। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने 562 रियासतों को भारत संघ में शामिल किया, लेकिन एक रियासत जम्मू-कश्मीर का जिम्मा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिया। भारत में जम्मू-कश्मीर के एकीकरण की प्रक्रिया में उन्होंने शेख अब्दुल्ला को शामिल किया गया। अनुच्छेद 370 संविधान पर आघात था। जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल करने के लिए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बलिदान दिया और उन्होंने श्रीनगर जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में अंतिम सांस ली।
सदन के नेता ने कहा कि अनुच्छेद 35 ए राष्ट्रपति आदेश के जरिए जोड़ा गया और संविधान की भावना तथा संसद की अवहेलना की गई। इसके जरिये जम्मू-कश्मीर की नागरिकता के प्रावधान तय किए गए।
जम्मू-कश्मीर की महिलाओं को राज्य के बाहर शादी करने पर संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया गया। इसके अनुसार राज्य का नागरिक उसी को माना जाएगा जो 1944 के पहले वहां रहा करते थे। संविधान के अनुसार संसद के बने हुए कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे। अनुसूचित जाति और जनजाति के प्रावधान जम्मू-कश्मीर के लोगों को प्राप्त नहीं थे। पंचायती राज का 73वां संशोधन अधिनियम जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता था।
नड्डा ने कहा कि विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए लोग भारत में प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच गए, लेकिन जम्मू -कश्मीर में पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकते थे। जम्मू-कश्मीर में पंजाब से सफाई कर्मचारियों को लाया गया और उनको बताया गया कि जम्मू-कश्मीर की नागरिकता दी जायेगी, लेकिन वे केवल सफाई कर्मचारी ही बन सकते थे। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने वर्ष 2019 में यह व्यवस्था खत्म कर दी और राज्य के लोगों को अन्य नागरिकों के समान अधिकार दिये।
आपातकाल का उल्लेख करते हुए नड्डा ने कहा कि कांग्रेस को आगामी 25 दिसंबर को लोकतंत्र विरोधी दिवस के समारोह में शामिल हो चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकारों ने अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल कर निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त किया है। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव ऐसी घटनाएं रोकने के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान मीडिया का गला घोट दिया गया था। आपातकाल के दौरान एक तरह से लघु संविधान ही लिख दिया गया। उन्होंने कहा कि संविधान के प्रस्तावना में बदलाव कर धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द जोड़े गए। संविधान सभा के सदस्यों ने इसकी आवश्यकता नहीं समझी थी, लेकिन कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के तहत प्रस्तावना के साथ छेड़छाड़ की।
शाहबानो मामले का उल्लेख करते हुए नड्डा ने कहा कि राजीव सरकार ने संसद का प्रयोग करते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया, जिससे मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसलों के बावजूद कांग्रेस सरकार ने तीन तलाक प्रथा को खत्म करने का प्रयास नहीं किया। पड़ोसी देशों के साथ सीमा के विवाद पर नड्डा ने कहा कि मोदी सरकार ने राज्यों के साथ मिलकर इन विवादों को सुलझाया है। उन्होंने बंगलादेश और श्रीलंका का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस धर्म के आधार पर मुस्लिम समुदाय को आरक्षण देकर लाभ पहुंचा रही है। इस पर कांग्रेस के सदस्यों ने कड़ा विरोध किया। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि आरक्षण पिछड़ेपन के आधार पर दिया जा रहा है। कांग्रेस धर्म के आधार पर आरक्षण का समर्थन नहीं करती है।