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ईरान-इसराइल संघर्ष का भारतीय कंपनियों के कारोबार पर होगा असर

नई दिल्ली: ईरान के इसरायल पर मिसाइल से हमले के बाद मध्यपूर्व में तनाव बढ़ गया है। इस कारण से महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग पर भारतीय कंपनियों को व्यापार में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि ईरान-इसरायल के बीच संघर्ष के चलते कंपनियों को उच्च माल ढुलाई लागत का सामना करन पड़ सकता है, क्योंकि लेबनान में मौजूद ईरान समर्थित हिजबुल्लाह मिलिशिया के यमन में मौजूदा हूती विद्रोहियों के साथ गहरे संबंध हैं, जोकि लाल सागर में ज्यादातर जहाजों पर हमला करने के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि इसरायल और ईरान के बीच सीधा संघर्ष भारतीय निर्यातकों के लिए महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग लाल सागर को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है। लाल सागर क्राइसिस पिछले साल अक्तूबर में शुरू हुई थी, जब ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों की ओर से इलाके में व्यापार को बाधित करना शुरू किया गया था। इसका भारत के पैट्रोलियम निर्यात पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

अगस्त 2024 में पैट्रोलियम निर्यात सालाना आधार पर 37.56 प्रतिशत गिरकर 5.96 अरब डॉलर रहा, जोकि पिछले साल समान अवधि में 9.54 अरब डॉलर था। क्रिसिल रेटिंग्स की हाल में जारी रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में स्वेज नहर के जरिए यूरोप, उत्तर अमरीका, उत्तर अफ्रीका और मध्य-पूर्व के अन्य देशों के साथ निर्यात करने के लिए कंपनियां लाल सागर का उपयोग करती हैं। रिपोर्ट में बताया कि वित्त वर्ष 23 में इस रीजन के जरिए भारत ने अपने 50 प्रतिशत निर्यात किए थे, जिसकी वैल्यू करीब 18 लाख करोड़ रुपए थी। इस रीजन के जरिए होने वाले व्यापार की आयात में हिस्सेदारी 30 प्रतिशत थी, जिसकी वैल्यू 17 लाख करोड़ रुपए थी। वित्त वर्ष 23 में भारत की वस्तुओं के आयात और निर्यात की संयुक्त वैल्यू 94 लाख करोड़ रुपए थी। इस वैल्यू में 68 प्रतिशत और वॉल्यूम में 95 प्रतिशत उत्पादों की शिपिंग समुद्री मांर्गों से ही की गई थी। संघर्ष के चलते कंपनियां पिछले साल नवंबर से लाल सागर के अलावा वैकल्पिक मार्गों से व्यापार कर रही हैं। इससे कंपनियों को सामान पहुंचाने में 15 से 20 दिन का समय अधिक लग रहा है।

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