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वायु प्रदूषण के कारण India में होती है सबसे ज्यादा मौतें

नई दिल्लीः जन्म के समय वजन कम होने से लेकर आंखें, फेफड़े, त्वचा और हृदय सहित लगभग सभी अंगों को नुकसान पहुंचाने वाली जहरीली हवा एक ‘मीठा जहर‘ बन गई है। इसके कारण देश में मौतों और बीमारियों का आंकड़ा बढ़ रहा है। इसके कारण मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पॉल्यूशन नामक पत्रिका में 2020 में प्रकाशित एक प्रमुख अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषण मनुष्यों के लिए ‘सबसे बड़ा अस्तित्व संबंधी खतरा‘ बनकर उभरा है। इससे वैश्विक स्तर पर हर साल 90 लाख से अधिक लोगों की मौत हो रही है। अध्ययन से पता चला है कि दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत में वायु प्रदूषण से अधिक लोगों की मौत होती है।

इसके परिणामस्वरूप 2019 में भारत में 16.7 लाख मौतें हुईं जो उस साल दुनिया भर में इस कारण हुई मौतों का 17.8 प्रतिशत थी। भारत की औसत पार्टकिुलेट मैटर सांद्रता 2019 में 70.3 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर थी – जो दुनिया में सबसे अधिक है। मौजूदा वर्ष की बात करें तो शुक्रवार सुबह दिल्ली में ही वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 500 से अधिक हो गया – जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा स्वस्थ मानी जाने वाली सीमा से 100 गुना अधिक है। पीएम2.5 और पीएम10 के खतरनाक स्तर के साथ दिन के अधिकांश समय यह 550 के आसपास रहा। साथ ही धुंध की मोटी चादर के कारण कुछ स्थानों पर दृश्यता 500 मीटर से भी कम हो गई।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत में श्वसन तंत्र चिकित्सा विभाग के प्रधान निदेशक एवं प्रमुख डॉ. विवेक नांगिया ने लैंसेट अध्ययन के आंकड़ों का हवाला देते हुये आईएएनएस को बताया, ‘‘हमारे देश में, विशेषकर सिंधु-गंगा पट्टी में, वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के साथ मौतों की संख्या भी बढ़ रही है। यह वही है जो हम इन दिनों अनुभव कर रहे हैं।’’ शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्ज नीति संस्थान द्वारा 2023 के लिए अगस्त में जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) रिपोर्ट से पता चला है कि वायु प्रदूषण से दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में जीवन प्रत्याशा11.9 साल कम हो गई है।

जीवन प्रत्याशा को मापते हुए, शोधकर्ताओं ने कहा कि 2.5 भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। हृदय रोगों (4.5 वर्ष) और बाल एवं मातृ कुपोषण (1.8 वर्ष) की तुलना में औसत भारतीय के जीवन में 5.3 वर्ष कम हो जाते हैं। सर गंगा राम अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. धीरेन गुप्ता वायु प्रदूषण को ‘धीमा जहर‘ कहते हैं। उन्होंने बताया, ‘‘यह अजन्मे, नवजात शिशुओं और सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करना शुरू कर देता है। इससे जन्म के समय वजन कम होता है, बड़े होने पर एलर्जी हो सकती है। यह न केवल फेफड़े, बल्कि हृदय को भी प्रभावित करता है; वायरल संक्रमण और एलर्जी को अधिक घातक बनाता है; फेफड़ों को स्थायी क्षति होती है; यहां तक कि गैर-दमा रोगियों को भी बार-बार खांसी हो सकती है; यह आंखों, मस्तिष्क, त्वचा, हृदय को प्रभावित करता है।’’

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