Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

कारगिल विजय दिवस के मौके पर शहीदों के परिजनों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी

द्रास: करगिल युद्ध के दो दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी ग्रेनेडियर उदयमान सिंह की मां कांता देवी को युद्ध पर जाने से पहले अपने बेटे के साथ हुई बातचीत का एक-एक शब्द याद है। कांता देवी, विजय दिवस के मौके पर अपने बेटे को श्रद्धांजलि देने के लिए पहली बार यहां करगिल युद्ध स्मारक पर पहुंची थीं। ग्रेनेडियर सिंह ने 1999 के संघर्ष के दौरान देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे। देवी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”मुझे यह देखकर खुशी और गर्व महसूस हो रहा है कि हर कोई मेरे बेटे को श्रद्धांजलि दे रहा है, लेकिन मैं अपने (इकलौते) बेटे को खोना नहीं चाहती थी। मुझे बहुत दुख होता है।” ग्रेनेडियर सिंह युद्ध के दौरान 18 ग्रेनेडियर्स का हिस्सा थे और उनके रेजिमेंट को दो अन्य बटालियन के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों से टाइगर हिल को वापस लेने की जिम्मेदारी दी गई थी।

देवी ने अपने बेटे को याद करते हुए कहा, “जब वह छुट्टियों पर घर आया था, तब मैंने उससे कहा था कि वह नौकरी छोड़ दे और घर पर ही रहे। तब उसने मुझसे पूछा कि यदि हर मां यही चाहेगी तो देश का क्या होगा? उसने मुझसे कहा था कि अब वह सिर्फ उसका बेटा नहीं बल्कि देश का बेटा है।” पूरा देश आज करगिल युद्ध में जीत की 24वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस दिन संघर्ष में शहीद हुए वीर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करने उनके परिजन करगिल युद्ध स्मारक आते हैं। इस दिन को “करगिल विजय दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

युद्ध में अपने पति, राजपूताना राइफल्स के मेजर पी. आचार्य को खोने वाली चारु लता आचार्य विजय दिवस को सैनिकों के बलिदान के उत्सव के रूप में मनाती हैं। उन्होंने कहा, “एक तरफ, आपको लगता है कि आपने अपने प्रियजन, अपने पति को खो दिया है, जिसने जीवन भर आपके साथ रहने का वादा किया था, लेकिन एक फौजी (सैनिक) की पत्नी होने के नाते, मुझे गर्व है कि मातृभूमि उनके परिवार से पहले थी।” आचार्य ने कहा कि उन्हें न केवल अपने पति बल्कि सभी सैनिकों पर समान रूप से गर्व होता है।

उन्होंने कहा, विजय दिवस सैनिकों के बलिदान पर शोक मनाने का नहीं बल्कि जश्न मनाने का अवसर है। आचार्य ने कहा, “कुछ लोग अपने धर्म के अनुसार व्रत रखते हैं, कुछ दिवाली मनाते हैं। हमारे लिए, हमारे परिवार के लिए, यह हमारी दिवाली और पोंगल है। यह हमारा उत्सव है। हम अपने सैनिकों के बलिदान पर शोक नहीं मनाते, हम जश्न मनाते हैं। हमें उनके बलिदान पर गर्व है।”

करगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए कैप्टन मनोज पांडे के भाई मनमोहन पांडे ने कहा कि यह दिन उनके लिए गर्व की भावना पैदा करता है। उन्होंने कहा, “हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि के अलावा और कुछ नहीं दे सकते। उन्होंने हमें बहुत कुछ दिया है। उन्होंने भले ही हमें छोड़ दिया है लेकिन उन्होंने हमें प्रेरणा भी दी है। हमारी आने वाली पीढि़यों को उनसे प्रेरणा मिलती रहेगी।”

Exit mobile version