Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

क्यों नहीं दी गई सज्जन कुमार को मौत की सज़ा; अदालत ने बताया कारण

नयी दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े हत्या के एक मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को मंगलवार को उम्रकैद की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि कुमार की वृद्धावस्था और बीमारियों को देखते हुए उन्हें मृत्युदंड के बजाय कम कठोर सजा दी गई है।
विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा ने कहा कि इस मामले में दो निदरेष व्यक्तियों की निर्मम हत्या बेशक कोई छोटा अपराध नहीं है, लेकिन यह दुर्लभतम मामला नहीं है, जिसके लिए मौत की सजा दी जाए। यह फैसला एक नवंबर 1984 को जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या से जुड़े मामले में आया।
न्यायमूर्ति बावेजा ने कहा कि कुमार ने जो अपराध किए, वे निस्संदेह क्रूर और निंदनीय थे, लेकिन उनकी 80 साल की उम्र और बीमारियों सहित कुछ ऐसे कारक भी थे, जो ह्लउन्हें मृत्युदंड के बजाय कम कठोर सजा देने के पक्ष में थे। भारतीय कानून में हत्या के अपराध के लिए अधिकतम मृत्युदंड, जबकि न्यूनतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। शिकायकर्ता, जसवंत की पत्नी और सरकार ने मामले में अधिकतम सजा देने का अनुरोध किया था।
अदालत ने कहा, जेल प्राधिकारियों की रिपोर्ट के मुताबिक अपराधी का ‘संतोषजनक’ आचरण, जिन बीमारियों से वह पीड़ित है, यह तथ्य कि अपराधी की समाज में जड़ें हैं और उसमें सुधार एवं पुनर्वास की गुंजाइश उन कारकों में शामिल हैं, जो मेरी राय में फैसले को मृत्युदंड के बजाय आजीवन कारावास की सजा के पक्ष में झुकाते हैं। अदालत ने कहा कि ह्लकुमार के व्यवहार को लेकर कोई शिकायत सामने नहीं आई हैह्व और जेल प्राधिकारियों की रिपोर्ट के हिसाब से कुमार का आचरण संतोषजनक था।
न्यायमूíत बावेजा ने कहा कि यह मामला उसी घटना का हिस्सा है और इसे उसी घटना की निरंतरता के रूप में देखा जा सकता है, जिसके लिए कुमार को 17 दिसंबर 2018 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
उच्च न्यायालय ने कुमार को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों की एक घटना के दौरान पांच लोगों की मौत का दोषी ठहराया था। न्यायमूर्ति बावेजा ने कहा, ह्लमौजूदा मामले में दो निदरेष व्यक्तियों की हत्या यकीनन कोई कम बड़ा अपराध नहीं है, लेकिन मेरी राय में उपरोक्त परिस्थितियां इसे ‘दुर्लभतम मामला’ नहीं बनातीं, जिसके लिए मृत्युदंड दिया जाना उचित हो।ह्व उन्होंने कहा कि कुमार को उस भीड़ का हिस्सा होने के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है, जिसने पीड़ितों के घर को आग के हवाले कर दिया था, उनका सामान लूट लिया था और परिवार के दो सदस्यों की निर्मम हत्याकर दी थी।
जेल रिपोर्ट का हवाला देते हुए न्यायमूíत बावेजा ने कहा कि खराब स्वास्थ्य के कारण कुमार अपना दैनिक कार्य ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने दोषी की मनोवैज्ञनिक और मानसिक मूल्यांकन रिपोर्ट पर गौर किया, जिससे पता चलता है कि वह सफदरजंग अस्पताल के मेडिसिन, यूरोलॉजी और न्यूरोलॉजी विभाग में उपचाराधीन थे और उन्हें अवसाद रोधी तथा नींद की दवाएं सुझाई गई थीं।
न्यायमूíत बावेजा ने कहा कि कुमार में मानसिक बीमारी के कोई लक्षण या संकेत नहीं दिखे हैं और उन्हें फिलहाल किसी मनोवैज्ञनिक हस्तक्षेप की आवशय़कता नहीं है।
उन्होंने कुमार पर लगभग 2.40 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने कुमार की सभी सजाएं एक साथ चलाने का आदेश दिया।
हिंसा और उसके बाद की स्थिति की जांच के लिए गठित नानावटी आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में दंगों के सिलसिले में 587 प्राथमिकी दर्ज की गई थीं, जिनमें लगभग 240 प्राथमिकी को पुलिस ने अज्ञत बताकर बंद कर दिया और 250 मामलों में आरोपी बरी हो गए। 587 प्राथमिकी में से केवल 28 मामलों में ही सजा हुई और लगभग 400 लोगों को दोषी ठहराया गया। कुमार सहित लगभग 50 को हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। दंगों में 2,733 लोग मारे गए थे।
उस समय एक प्रभावशाली कांग्रेस नेता और सांसद रहे कुमार पर 1984 में एक और दो नवंबर को दिल्ली की पालम कॉलोनी में पांच लोगों की हत्या के मामले में आरोप लगाया गया था। इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और फैसले को चुनौती देने वाली उनकी अपील सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।
दो अन्य मामलों में कुमार को क्रमश: बरी किए जाने और उनकी आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ दो याचिकाएं दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च अदालत के समक्ष लंबित हैं।
Exit mobile version