नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage)
को कानूनी मान्यता देने की गुहार लगाने वाली याचिकाओं पर सुनावई करते हुए इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है। उन्होंने समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया और केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए उचित कदम उठाने का आदेश भी दिया।
CJI ने कहा कि एक सामाजिक संस्था के रूप में विवाह को विनियमित करने में राज्य का वैध हित है और अदालत विधायी क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती है और उसे एक कानून के माध्यम से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का निर्देश नहीं दे सकती है। वहीं जस्टिस संजय किशन कौल ने भी CJI के फैसले से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव नहीं कर सकता, यह सरकार का काम है। संविधान पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि क्वीरनेस न तो शहरी है और न ही अभिजात्य हैं. हालांकि उन्होंने मुख्य न्यायाधीश द्वारा जारी किए गए निर्देशों से असहमति जताई। जस्टिस रवींद्र भट्ट ने अपने अलग फैसले में कहा कि सरकार को इस मसले पर कानून बनाना चाहिए, ताकि समलैंगिकों को समाजिक और कानूनी मान्यता मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर इस पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। अदालत ने इस मामले पर 10 दिन तक सुनवाई की थी जिसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था। बता दें कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली मांग को लेकर केंद्र सरकार ने शुरू से ही विरोध किया है।
सरकार का कहना है कि यह न केवल देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 158 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी पड़ेगी।