उत्तराखंड के टिहरी जिले में खतलिंग ग्लेशियर के निचले हिस्से में बनी झील खतरे का संकेत

टिहरी: उत्तराखंड की कई झीलें दिखने में तो खूबसूरत लगती हैं, मगर उनका रौद्र रूप किसी से छुपा नहीं है। साल 2013 में केदारनाथ में एक झील के टूटने के बाद तबाही का ख़ौफ़नाक सैलाब सामने आया था, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। अब एक बार फिर उत्तराखंड के टिहरी जिले से.

टिहरी: उत्तराखंड की कई झीलें दिखने में तो खूबसूरत लगती हैं, मगर उनका रौद्र रूप किसी से छुपा नहीं है। साल 2013 में केदारनाथ में एक झील के टूटने के बाद तबाही का ख़ौफ़नाक सैलाब सामने आया था, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। अब एक बार फिर उत्तराखंड के टिहरी जिले से खतरे के संकेत मिल रहे हैं। यहां खतलिंग ग्लेशियर के निचले हिस्से में बनी एक झील आने वाले समय में एक बड़ा खतरा साबित हो सकती है।

वाडिया इंस्टीटय़ूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कहा कि साल 1968 में ये झील अस्तित्व में भी नहीं थी। लेकिन 1994 में ये धीरे-धीरे सैटेलाइट इमेज में नजर आने लगी। वहीं 2022 में इस झील ने (0.38 स्क्वायर किलोमीटर) तक अपना दायरा बढ़ा लिया। खतलिंग ग्लेशियर में बनी इस झील की सहायक भागीरथी नदी है। अगर कभी ये झील टूटी तो भागीरथी नदी के किनारे बसे गांव, स्ट्रर, इमारतें, प्रोजेक्ट और ना जाने कितने गांव झील के पानी की चपेट में आ सकते हैं।

इस झील की गहराई के बारे में फिलहाल सटीक जानकारी नहीं मिल सकी है। वैज्ञानिकों ने कहा कि उत्तराखंड के ऊंचे ग्लेशियरों में कुल 350 झीलें वो हैं, जिन्हें वैज्ञानिकों की भाषा मे मोरिन डैम (झील) कहा जाता है। मोरिन झीलें अलग-अलग मटेरियल से बनती हैं और टूट भी जाती हैं। टिहरी की खतलिंग ग्लेशियर में बनी झील इन्हीं में से एक है। वाडिया के निदेशक कला चंद सैन की मानें तो फिलहाल इस झील से कोई खतरा नहीं है, लेकिन अगर झील में क्षमता से ज्यादा पानी आया तो झील के टूटने का खतरा रहता है। फिलहाल झील तक पहुंच मुश्किल है, इसलिए वाडिया के वैज्ञानिक सैटेलाइट की मदद से इस झील की मॉनिटरिंग कर रहे हैं।

 

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