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सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना कार्यवाही में डॉक्टर का लाइसेंस निलंबित करने का कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि किसी चिकित्सक को ‘कदाचार‘ के लिए दंडित करने की शक्ति विशेष रूप से राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के पास है। न्यायमूर्त बी .आर. गवई और न्यायमूर्त संजय करोल की पीठ एक डॉक्टर द्वारा कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अवमानना कार्यवाही में चिकित्सा का अभ्यास करने के लिए उसके लाइसेंस को निलंबित कर दिया गया था।पिछले साल 14 जुलाई को पारित उच्च न्यायालय के आदेश ने निलंबन की अवधि 19 अगस्त, 2022 तक बढ़ा दी। इसने एक कारण बताओ नोटिस भी जारी किया कि याचिकाकर्ता का निलंबन दो और वर्षों के लिए प्रभावित क्यों नहीं होना चाहिए।

सिलीगुड़ी नगर निगम की स्वीकृत योजना के उल्लंघन में अपीलकर्ता द्वारा निर्मति एक अनधिकृत संरचना के विध्वंस से संबंधित मामले में एक निजी पक्ष के आवेदन पर अवमानना ??कार्यवाही शुरू की गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इस अधिनियम (राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019) के प्रावधानों के साथ-साथ अब निरस्त, मेडिकल काउंसिल अधिनियम, 1956 के प्रावधानों को देखने से पता चलता है एक पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी को कि कदाचार के लिए दंडित करने की शक्ति विशेष रूप से इसके तहत परिकल्पित निकाय के पास है।‘‘

साथ ही, इसमें कहा गया है कि अवमानना क्षेत्रधिकार का प्रयोग करते हुए अदालत अवमानना अधिनियम, 1971 के अनुसार 6 महीने तक की कैद या अधिकतम 2,000 रुपये का जुर्माना लगा सकती है।सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने कहा कि उसे यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि अवमाननाकर्ता को दी गई सजा पूरी तरह से अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत नहीं है।शीर्ष अदालत ने अपील की अनुमति देते हुए कहा, ‘(उच्च न्यायालय का) फैसला.. रद्द किया जाता है। अपीलकर्ता का मेडिकल प्रैक्टिस करने का लाइसेंस बहाल किया जाता है।‘

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