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1984 सिख विरोधी दंगा मामला: पीड़ित पक्ष के वकील वरुण चुघ बोले, सज्जन कुमार को मृत्युदंड न मिला तो हाईकोर्ट में करेंगे अपील

दिल्ली के सिख विरोधी दंगों में राउज एवेन्यू कोर्ट ने बुधवार को पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दोषी ठहराया है। अभी सजा नहीं सुनाई गई है लेकिन पीड़ित पक्ष के वकील वरुण चुघ

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1984 anti-Sikh riots case: दिल्ली के सिख विरोधी दंगों में राउज एवेन्यू कोर्ट ने बुधवार को पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दोषी ठहराया है। अभी सजा नहीं सुनाई गई है लेकिन पीड़ित पक्ष के वकील वरुण चुघ ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि आखिर पीड़ितों को 40 साल बाद न्याय मिला है और उम्मीद है कि कोर्ट इसे दुर्लभ से दुर्लभतम मामला मानकर मृत्युदंड देगी और ऐसा नहीं हुआ तो हाईकोर्ट में मृत्युदंड की अपील की जाएगी क्योंकि मामला पिता-पुत्र को जिंदा जला देने का है। दैनिक सवेरा टीवी के साथ उन्होंने इस केस के बारे में विस्तार से बताया। पेश हैं सवाल जवाब:

कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को जिस केस में सजा सुनाई गई है, उस पर आपकी पहली प्रतिक्रिया और केस का विवरण?
मामला एक नवंबर 1984 का है, दिल्ली के सरस्वती विहार इलाके में सिख विरोधी दंगे के दौरान बाप-बेटे को जिंदा जला दिया गया था। इस मामले में डर के कारण कोई भी गवाही देने को तैयार नहीं था। उनके घरवालों को डरा दिया गया था कि कोई भी बयान नहीं देगा। लेकिन 2014 में केंद्र सरकार ने पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए एसआईटी गठित की। कोर्ट ने कई गवाहों का परीक्षण किया। एक गवाह ने पहचाना कि भीड़ का नेतृत्व सज्जन कुमार ही कर रहे थे। आखिरकार 40 साल बाद पीड़ितों को इंसाफ मिला है। सज्जन कुमार को दोषी पाया गया है। वह पहले से एक दूसरे मामले में जेल में हैं।

इसमें न्याय पाने में 40 साल क्यों लगे, परिवार के लोग पहले गवाही देने क्यों नहीं आए और अब कैसे आगे आए? आप लोगों ने क्या पहल की?
1984 के बाद इतना डर पैदा कर दिया गया था कि कोई आगे नहीं आ रहा था। सबूत नष्ट कर दिए गए थे। गवाहों को भगा दिया या मार दिया था। सज्जन कुमार और गैंग ने इतनी किलिंग की। मैं बताना चाहता हूं कि सिख दंगों के अभी 186 ऐसे केस हैं, जिनमें अभी तक तफ्तीश ही नहीं हुई है। फाइलें क्लोज कर दी। कह दिया गया कि इसमें कोई गवाह नहीं है, मामला ही नहीं बनता। ऐसे मामलों की भी दोबारा जांच शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2015-16 में आदेश दिए थे और अब उन पर भी बहस चल रही है। इसी कारण ऐसे मामलों में अब चालीस साल बाद ही सही, इंसाफ मिलना शुरू हो गया है।

आपको क्या लगता है कि इसमें किस पैमाने पर सजा सुनाई जा सकती है? उम्र कैद या मृत्युदंड?
इसमें कैपिटल पनिशमैंट यानि मृत्युदंड की सजा होनी चाहिए क्योंकि यह रेयरैस्ट ऑफ द रेयर मामला बनता है। इसमें बाप-बेटे को जिंदा जला दिया गया और यह काम भीड़ ने किया और भीड़ का नेतृत्व इन्होंने किया। अगर मृत्यु दंड न दिया गया तो हम दिल्ली हाईकोर्ट में अपील करेंगे कि इसमें मृत्यु दंड दिया जाए।

ऐसा क्या हुआ कि 2014 के बाद इन मामलों की सुनवाई में तेजी हुई और उससे पहले नहीं हुई थी? क्या पहले की सरकार की ओर से कोई दबाव था?
जब यह घटना हुई जिसमें जसवंत सिंह और उनके बेटे को जिंदा जला दिया गया था तो तब सज्जन कुमार सीनियर लीडर थे, सांसद थे। उन्होंने इतनी दहशत फैला दी थी कि लोग आगे नहीं आ रहे थे। मेरा ख्याल है कि उनके दबाव में और उनकी टीम के दबाव में कोई गवाह आगे नहीं आया। आज जब यह फैसला आया है तो लोग निडर होकर गवाही देने आएंगे। उस दौरान देश भर में सिखों पर हमले हुए। मैंने आरटीआई के माध्यम से रेलवे पुलिस से भी ऐसे सारे मामलों की रिपोर्ट मांगी है। आज के फैसले से भी लगता है कि इन मामलों में इतने समय बाद भी इंसाफ मिल सकता है, ठोस गवाह सामने आ सकते हैं, सजा मिल सकती है। आज भी ठोस गवाह के आधार पर दोषी ठहराया गया है।

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