भारत की शीर्ष महिला बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने खुलासा किया है कि वह गठिया (आर्थराइटिस) से जूझ रही हैं और इसी साल के अंत तक अपने खेल करियर के बारे में फैसला लेंगी. उन्होंने बताया कि इस बीमारी के कारण उनके लिए रोज की ट्रेनिंग करना बहुत मुश्किल हो गया है. साइना ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं. उन्होंने 2012 में लंदन ओलंपिक में महिला सिंगल्स में कांस्य पदक जीता था. साइना दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी भी रही हैं और उन्होंने 2010 और 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता है. साइना ने ‘हाउस ऑफ ग्लोरी’ पॉडकास्ट में कहा, “मेरे घुटने ठीक नहीं हैं. मुझे गठिया है.
मेरे कार्टिलेज की हालत बहुत खराब है. आठ-नौ घंटे की ट्रेनिंग करना बहुत मुश्किल हो गया है. ऐसे में आप दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों को कैसे चुनौती देंगे?” रिटायरमेंट के बारे में बात करते हुए साइना ने कहा, “मैं भी इस बारे में सोच रही हूं. दुख होगा क्योंकि यह मेरे लिए एक नौकरी की तरह है, जैसे किसी आम इंसान की नौकरी होती है. खिलाड़ी का करियर हमेशा छोटा होता है. मैंने 9 साल की उम्र में खेलना शुरू किया था और अगले साल मैं 35 साल की हो जाऊंगी.” साइना ने आगे कहा, “तो, मेरा करियर भी काफी लंबा रहा है और मुझे इस पर गर्व है. मैंने अपने शरीर को बहुत हद तक तोड़ दिया है, लेकिन मैं खुश हूं कि मैंने अपना सब कुछ दिया है. इस साल के अंत तक मैं देखूंगी कि मैं कैसा महसूस करती हूं.”
साइना ने तीन ओलंपिक (2008, 2012, और 2016) में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. उन्होंने कहा, “ओलंपिक में भाग लेना हर बच्चे का सपना होता है. इसके लिए आप सालों तक तैयारी करते हैं. इसलिए, जब आपको एहसास होता है कि आप नहीं खेल पाएंगे, तो बहुत दुख होता है.” “क्योंकि ऐसा नहीं है कि आप खेलना नहीं चाहते, लेकिन आपका शरीर कहता है कि आप ठीक नहीं हैं और आपको चोटें लगी हैं। लेकिन मैंने बहुत मेहनत की है. मैंने तीन ओलंपिक में हिस्सा लिया. मैंने सभी में 100% दिया। मैं इस पर गर्व कर सकती हूं और खुश हो सकती हूं.” साइना ने अपने करियर के उस कठिन दौर के बारे में भी बात की जब वह 2010 के मध्य में लगातार जीत हासिल करने में संघर्ष कर रही थीं और 2014 में गोपीचंद अकादमी छोड़कर बेंगलुरु में ट्रेनिंग का मुश्किल फैसला लिया.
उन्होंने कहा, “नवंबर 2012 से अगस्त 2014 तक, मुझे अच्छे नतीजे नहीं मिले. लगभग दो साल तक प्रदर्शन नहीं कर पाने से मैं परेशान थी. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था और मैं समाधान नहीं ढूंढ पा रही थी. मेरी रैंकिंग 9वीं या 10वीं हो गई थी. मैंने सोचा कि मुझे कुछ अलग करना होगा. मैंने कभी घर से बाहर जाकर ट्रेनिंग नहीं की थी. यह बाहर जाने का एक बड़ा फैसला था. मैं भावुक भी हो गई थी, लेकिन मुझे यह फैसला लेना था. यह मेरे करियर का सवाल था.”
नई जगह पर ट्रेनिंग करने से साइना के नतीजे बेहतर होने लगे और मार्च 2015 तक वह फिर से दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी बन गईं. साइना ने कहा कि विश्व चैंपियन बनने की कोशिश में खिलाड़ियों के पास लंबा ब्रेक लेने का समय नहीं होता. उन्होंने कहा, “जब आप एक बड़े खिलाड़ी बन जाते हैं, तो आपके दोस्तों, परिवार, कोच, स्पॉन्सर, सभी को आपसे प्रदर्शन की उम्मीद होती है. इसमें बहुत सारे लोग जुड़े होते हैं. पहले से ही छोटे करियर स्पैन के साथ, खिलाड़ी चार साल का ब्रेक लेने का जोखिम नहीं उठा सकते और उन्हें लगातार प्रदर्शन करते रहना होता है. अगर आप एक अंतर्राष्ट्रीय चैंपियन बनना चाहते हैं, तो आपको मजबूत होकर कठिन फैसले लेने पड़ते हैं.