Siddharth Vishwakarma ने की National Games में स्वर्णिम वापसी

पणजी: फेनेस्टा ओपन नेशनल टेनिस चैंपियनशिप 2018 का खिताब जीतने के बाद आर्थिक तंगी के कारण टेनिस कोर्ट से दूरी बनाने वाले सिद्धार्थ विश्वकर्मा ने 37वें राष्ट्रीय खेलों के टेनिस स्पर्धा में पुरुष एकल का स्वर्ण पदक जीत कर धमाकेदार वापसी की है। विश्वकर्मा ने अपने राज्य के साथी सिद्धार्थ रावत को तीन सेटों में.

पणजी: फेनेस्टा ओपन नेशनल टेनिस चैंपियनशिप 2018 का खिताब जीतने के बाद आर्थिक तंगी के कारण टेनिस कोर्ट से दूरी बनाने वाले सिद्धार्थ विश्वकर्मा ने 37वें राष्ट्रीय खेलों के टेनिस स्पर्धा में पुरुष एकल का स्वर्ण पदक जीत कर धमाकेदार वापसी की है। विश्वकर्मा ने अपने राज्य के साथी सिद्धार्थ रावत को तीन सेटों में हराया और चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। उन्होंने रावत के साथ मिलकर पुरुष युगल में कांस्य पदक जीता था।

भारत के टेनिस स्टार सिद्धार्थ विश्वकर्मा 2018 में नई बुलंदियों को छू रहे थे और उसी साल उन्होंने फेनेस्टा ओपन नेशनल टेनिस चैंपियनशिप का खिताब जीता था। इसके बाद सबको यह उम्मीद थी कि वह अपने इस प्रदर्शन को आगे भी जारी रखेंगे लेकिन उन्होंने फिर सर्किट छोड़ दिया और नोएडा में एक स्थानीय अकादमी में कोचिंग देनी शुरू कर दी क्योंकि उनके माता-पिता उनका खर्च वहन नहीं कर सकते थे।

सिद्धार्थ ने साल की शुरुआत में एक बार फिर से वापसी की और पिछले महीने फेनेस्टा ओपन का खिताब अपने नाम किया। अपने उसी फॉर्म को यहां भी बरकरार रखते हुए विश्वकर्मा ने रविवार को फतोर्दा इंडोर स्टेडियम में 37वें राष्ट्रीय खेलों के टेनिस स्पर्धा में पुरुष एकल वर्ग का स्वर्ण पदक जीत लिया। वाराणसी में जन्मे खिलाड़ी ने कहा, ‘‘मुझे आज इस स्पर्धा में यूपी का पहला टेनिस स्वर्ण पदक जीतकर बहुत गर्व महसूस हो रहा है।

मैं राष्ट्रीय खेलों में अपने पहले प्रदर्शन के लिए इससे अधिक कुछ नहीं मांग सकता था। यह बहुत अच्छा एहसास है।’’ ऐसा लग रहा था कि गर्मी की परिस्थितियों के कारण 29 वर्षीय खिलाड़ी की ताकत खत्म हो रही थी, लेकिन निर्णायक मुकाबला जीतने के लिए उसके पास पर्याप्त मौके थे। उन्होंने मैच के बाद कहा, ‘‘ ऐसा लगा जैसे मैं न केवल अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ मुकाबला खेल रहा था, बल्कि आज के मौसम के साथ भी मुकाबला कर रहा था क्योंकि गर्मी में यह मैच जितना लंबा चला, मुझे वास्तव में अपने खेल के स्तर को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा।

अंत में, अपनी सर्विस पर भरोसा करने और आक्रामक ग्राउंड स्ट्रोक पर भरोसा करने की मेरी रणनीति महत्वपूर्ण क्षणों में काम आई।’’ विश्वकर्मा का शुरुआती जीवन भी कठिनाइयों भरा रहा है। उनके पिता वाराणसी में एक फैक्ट्री कर्मचारी हैं और माँ एक गृहिणी हैं। इससे उनके लिए टेनिस में अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए धन जुटाना हमेशा कठिन था। उन्होंने कहा, ‘‘मैं जिस खेल को 9 साल की उम्र से खेल रहा था, उसे छोड़ना मेरे लिए बेहद दुखद था। लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि मेरे परिवार के पास मेरे सपने को पूरा करने के लिए आवश्यक धन नहीं था।

यह निराशाजनक भी था क्योंकि प्रदर्शन के लिहाज से 2018 मेरे लिए बहुत अच्छा साल था। मैं भारत में 7वें नंबर पर था और नियमित रूप से 200-300 आईटीएफ रैंकिंग रेंज में खिलाड़यिों को हरा रहा था, जबकि खुद मेरी रैंकिंग काफी नीचे थी।’’ विश्वकर्मा ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा, ‘‘ मुझे खेल पसंद है,लेकिन प्रतिस्पर्धा करने या ट्रेनिंग करने के लिए पैसे नहीं होने के कारण अच्छी सुविधा नहीं मिल पाती थी।

मैंने एक अकादमी में कुछ समय के लिए टेनिस कोच के रूप में भी काम किया क्योंकि मैं व्यावहारिक रूप से खेल के अलावा और कुछ नहीं जानता था।’’ यह करीब चार साल तक चला जब तक कि विश्वकर्मा फिर से अपने पूर्व कोच रतन प्रकाश शर्मा के संपर्क में नहीं आए। प्रकाश शर्मा ने उन्हें सपोर्ट करने और ट्रेनिंग देने की पेशकश की क्योंकि उन्हें लड़के की प्रतिभा पर पूरा विश्वास था।

अपनी वापसी के बारे में बात करते हुए, विश्वकर्मा ने कहा, ‘‘जब मैं इतने लंबे अंतराल के बाद वापस आया, तो मैं अभ्यास से इतना बाहर था कि मैं मुश्किल से दो गेंदों को भी ठीक से हिट नहीं कर पा रहा था। मेरे साथी मुझ पर हंसते थे और मेरे चेहरे पर या मेरी पीठ पीछे मुझे नीचा दिखाने वाली बातें कहते थे। सच कहूँ तो, जब मेरे मन में हार मानने का विचार आया, तब भी इसने मुझे उन सभी के सामने यह साबित करने के लिए और भी अधिक प्रेरित किया कि मैं क्या करने में सक्षम हूं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अब जब मैंने ऐसा कर लिया है, तो मैंने उन्हें हमेशा के लिए उनकी बोलती बोलती बंद कर दी है। मैंने कभी लोगों को यह कहते नहीं सुना कि मैं अब कभी कुछ नहीं करूंगा।’’

- विज्ञापन -

Latest News