सलोकु मः ३ ॥ सतिगुर की सेवा सफलु है जे को करे चितु लाइ ॥ मनि चिंदिआ फलु पावणा हउमै विचहु जाइ ॥ बंधन तोड़ै मुकति होइ सचे रहै समाइ ॥ इसु जग महि नामु अलभु है गुरमुखि वसै मनि आइ ॥ नानक जो गुरु सेवहि आपणा हउ तिन बलिहारै जाउ ॥१॥ मः ३ ॥.
सूही महला ५ ॥ अबिचल नगरु गोबिंद गुरू का नामु जपत सुखु पाइआ राम ॥ मन इछे सेई फल पाए करतै आपि वसाइआ राम ॥ करतै आपि वसाइआ सरब सुख पाइआ पुत भाई सिख बिगासे ॥ गुण गावहि पूरन परमेसुर कारजु आइआ रासे ॥ प्रभु आपि सुआमी आपे रखा आपि पिता आपि माइआ ॥ कहु.
धनासरी महला ५ ॥ वडे वडे राजन अरु भूमन ता की त्रिसन न बूझी ॥ लपटि रहे माइआ रंग माते लोचन कछू न सूझी ॥१॥ बिखिआ महि किन ही त्रिपति न पाई ॥ जिउ पावकु ईधनि नही ध्रापै बिनु हरि कहा अघाई ॥ रहाउ ॥ दिनु दिनु करत भोजन बहु बिंजन ता की मिटै न.