rocket
domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init
action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने ‘बिना उचित प्रक्रिया के पालन’ बुलडोजर से एक पत्रकार का घर गिराने पर उत्तर प्रदेश सरकार को पीड़ित को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का बुधवार को आदेश दिया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वर्ष 2019 में महाराजगंज जिले में सड़क चौड़ीकरण की एक परियोजना के लिए पत्रकार मनोज टिबरेवाल का घर गिराने के मामले में सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
पीठ ने मुआवजा देने का निर्देश देते हुए कहा कि अदालत के इस आदेश की प्रति सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को भी भेजी जाए। पीठ ने मुआवजा देने का आदेश पारित करते हुए कहा, “आप (सरकार) बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए बुलडोजर लेकर नहीं आ सकते और रातों-रात घर को ध्वस्त नहीं कर सकते।’ शीर्ष अदालत ने राज्य के अधिकारियों को तोड़फोड़ करने पर फटकार लगाई और इसे “अराजकता” करार दिया। पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को महाराजगंज जिले में अवैध तोड़फोड़ की जांच करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने पत्रकार मनोज टिबरेवाल आकाश द्वारा भेजी गई शिकायत के आधार पर 2020 में स्वत: संज्ञान करवाई की थी। टिबरेवाल का महाराजगंज जिले में स्थित घर 2019 में तोड़ दिया गया था। वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर और अधिवक्ता शुभम कुलश्रेष्ठ ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आकाश का पक्ष रखा। राज्य सरकार ने दावा किया कि आकाश ने सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण किया है।
पीठ ने राज्य के वकील से पूछा, “आप कहते हैं कि वह 3.7 मीटर तक अतिक्रमण था। हम इसे स्वीकार करते हैं। हम उसे इसके लिए प्रमाण पत्र नहीं दे रहे हैं। लेकिन, आप इस तरह से लोगों के घरों को कैसे ध्वस्त करना शुरू कर सकते हैं।”
अदालत ने राज्य के अधिकारियों से उचित प्रक्रिया का पालन करने में विफल रहने पर सवाल उठाया, क्योंकि दावा किया गया था कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था। पीठ ने राज्य सरकार से पूछा, “आप केवल साइट पर गए और लाउडस्पीकर के माध्यम से लोगों को सूचित किया।”
अदालत को बताया गया कि 100 से अधिक अन्य निर्माण भी ध्वस्त कर दिए गए थे। इसके बारे में लोगों को केवल सार्वजनिक घोषणाओं के माध्यम से जानकारी दी गई थी। पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद महसूस किया कि अधिकारियों को परिवारों को खाली करने के लिए समय देना चाहिए था।
अदालत ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की एक रिपोर्ट पर भी भरोसा किया कि अधिकतम 3.70 मीटर तक अतिक्रमण था, लेकिन इसकी वजह से पूरे घर को ध्वस्त करने का औचित्य नहीं था।
आयोग ने याचिकाकर्ता को अंतरिम मुआवजा देने, मामले में मुकदमा दर्ज करने और अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करने की सिफारिश की थी। शीर्ष अदालत के समक्ष पीड़ित पत्रकार का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर और अधिवक्ता शुभम कुलश्रेष्ठ ने रखे।