SYL विवाद: पंजाब-हरियाणा के CM केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत की अध्यक्षता में करेंगे चर्चा, 19 को होगी SC में सुनवाई

चंडीगढ़: सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर मुद्दे को लेकर आज एक बार फिर पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्री आमने सामने होंगे। एसवाईएल को लेकर आज दोपहर दिल्ली में होने वाली दोनों राज्यों की इस बैठक में केंद्रीय जल मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद रहेंगे। यह बैठक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर की जा रही.

चंडीगढ़: सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर मुद्दे को लेकर आज एक बार फिर पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्री आमने सामने होंगे। एसवाईएल को लेकर आज दोपहर दिल्ली में होने वाली दोनों राज्यों की इस बैठक में केंद्रीय जल मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद रहेंगे। यह बैठक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर की जा रही है। इस मुद्दे पर दोनों राज्यों को 19 जनवरी को कोर्ट में जवाब दाखिल करना है। अगर आज इस बैठक में दोनों राज्यों की सहमति नहीं बनी तो फिर हरियाणा एसवाईएल विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पास जाएगा।

बता दें कि इससे पहले भी पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्री के बीच अक्टूबर महीने में मीटिंग की गई थी लेकिन उस मीटिंग में भी कोई समाधान नहीं निकला था। सीएम भगवंत मान ने यह कहते हुए नहर के निर्माण से इनकार कर दिया था कि SYL एग्रीमेंट को 42 साल बाद लागू नहीं किया जा सकता। पंजाब का भूजल स्तर बहुत नीचे जा चूका है और पीने योग्य पानी बहुत कम बचा है, जो पंजाब के लिए भी काफी नहीं है। ऐसे में हम हरियाणा तो क्या किसी अन्य राज्य को भी पानी नहीं दे सकते है। वहीं सीएम मान ने यह हरियाणा को यह भी कहा था कि वह पानी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करे।

वहीं सीएम भगवंत मान ने कहा कि एसवाईएल मामले को केवल राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पंजाब सिर्फ 27 प्रतिशत नदियां, नाले और नहरों का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि 73 प्रतिशत पानी धरती से निकाला जा रहा है। 1400 किमी नहरें, नदियां बंद हो गई हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर 42 साल पहले साल 1981 में पंजाब और हरियाणा के बीच एक समझौता हुआ था लेकिन समझौते के मुताबिक काम नहीं होने पर दोनों राज्यों के बीच विवाद बढ़ता गया।

क्या है SYL नहर का विवाद

  •  पंजाब ने एसवाईएल नहर के निर्माण की मंजूरी के लिए हरियाणा से साल 1976 में 1 करोड़ रुपए लिए और अगले साल 1977 में नहर के निर्माण को मंजूरी दे दी लेकिन बाद में पंजाब ने नहर के निर्माण को लेकर टाल-मटोल करना शुरू कर दिया और निर्माण नहीं करवाया।
  • उसके अगले दो साल बाद हरियाणा ने SYL नहर के निर्माण की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और पुनर्गठन एक्ट की धारा 78 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
  • 1980 में पंजाब सरकार बर्खास्त होने के बाद 1981 में PM इंदिरा गांधी की मौजूदगी में दोनों राज्यों का समझौता हुआ और 1982 में इंदिरा गांधी ने नहर का निर्माण शुरू करवाया।
  • जिसके बाद शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने नहर की खुदाई के विरुद्ध मोर्चा शुरू कर दिया। जिसके बाद साल 1985 में एक राजीव-लोंगोवाल समझौता हुआ, जिसमें पंजाब नहर के निर्माण पर सहमति जताई गई।
  • जिसके बाद 1990 में नहर के निर्माण के दौरान दो इंजीनियरों की हत्या कर दी गई। जिसके बाद तत्कालीन हरियाणा मुख्यमंत्री हुक्म सिंह ने केंद्र सरकार से नहर के निर्माण का काम BSF को सौंपने की मांग की।
  • वहीं साल 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को वर्ष 2002 को एक साल के भीतर SYL नहर के निर्माण का निर्देश दिया। 2015 में हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई के लिए संविधान पीठ बनाने का अनुरोध किया। जिसके बाद 5 सदस्यों की संविधान पीठ बनाई गई।
  • 2016 में गठित 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने पहली सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को बुलाया। उसी साल दूसरी सुनवाई में पंजाब में 121 किमी लंबी नहर को पाटने का काम शुरू हो गया। 19 मार्च तक सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति के आदेश देते हुए नहर पाटने का काम रूकवा दिया गया।
  • 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों राज्य नहर का निर्माण नहीं करते हैं तो कोर्ट खुद नहर का निर्माण कराएगा। अभी बीते वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए नोटिस जारी किया है।

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