हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 12 अप्रैल 2023

बिहागड़ा महला ५ ॥ हरि चरण सरोवर तह करहु निवासु मना ॥ करि मजनु हरि सरे सभि किलबिख नासु मना ॥ करि सदा मजनु गोबिंद सजनु दुख अंधेरा नासे ॥ जनम मरणु न होइ तिस कउ कटै जम के फासे ॥ मिलु साधसंगे नाम रंगे तहा पूरन आसो ॥ बिनवंति नानक धारि किरपा हरि चरण.

बिहागड़ा महला ५ ॥ हरि चरण सरोवर तह करहु निवासु मना ॥ करि मजनु हरि सरे सभि किलबिख नासु मना ॥ करि सदा मजनु गोबिंद सजनु दुख अंधेरा नासे ॥ जनम मरणु न होइ तिस कउ कटै जम के फासे ॥ मिलु साधसंगे नाम रंगे तहा पूरन आसो ॥ बिनवंति नानक धारि किरपा हरि चरण कमल निवासो ॥१॥ तह अनद बिनोद सदा अनहद झुणकारो राम ॥ मिलि गावहि संत जना प्रभ का जैकारो राम ॥ मिलि संत गावहि खसम भावहि हरि प्रेम रस रंगि भिंनीआ ॥ हरि लाभु पाइआ आपु मिटाइआ मिले चिरी विछुंनिआ ॥ गहि भुजा लीने दइआ कीन्हे प्रभ एक अगम अपारो ॥ बिनवंति नानक सदा निरमल सचु सबदु रुण झुणकारो ॥२॥ सुणि वडभागीआ हरि अंम्रित बाणी राम ॥ जिन कउ करमि लिखी तिसु रिदै समाणी राम ॥ अकथ कहाणी तिनी जाणी जिसु आपि प्रभु किरपा करे ॥ अमरु थीआ फिरि न मूआ कलि कलेसा दुख हरे ॥ हरि सरणि पाई तजि न जाई प्रभ प्रीति मनि तनि भाणी ॥ बिनवंति नानक सदा गाईऐ पवित्र अंम्रित बाणी ॥३॥ मन तन गलतु भए किछु कहणु न जाई राम ॥ जिस ते उपजिअड़ा तिनि लीआ समाई राम ॥ मिलि ब्रहम जोती ओति पोती उदकु उदकि समाइआ ॥ जलि थलि महीअलि एकु रविआ नह दूजा द्रिसटाइआ ॥ बणि त्रिणि त्रिभवणि पूरि पूरन कीमति कहणु न जाई ॥ बिनवंति नानक आपि जाणै जिनि एह बणत बणाई ॥४॥२॥५॥

पद अर्थ :-सर-तालाब। सरोवर-श्रेष्ठ तालाब। तह-वहाँ। मना-हे मन ! मजनु-स्नान। सरे-सरि, सर में। हरि सरे-परमात्मा (की सिफ़त-सालाह) के सर में। सभि-सारे। किलबिख-पाप। सजनु-मित्र। नासे-नास कर देता है। कउ-को। कटै-काट देता है। फासे-फाहीआँ (फंदे)। रंगे-रंगि, प्रेम में। तहा-उस (साध संगत) में। हरि-हे हरि !।1। तह-वहाँ, साध संगत में। बिनोद-खुशी। अनहद-एक-रस, लगातार। झुणकारो-(वज रहे साजाँ की) मठी मठी आवाज। मिलि-मिल के। जैकारो-सिफ़त-सालाह। खसम भावहि-खसम को प्यारे लगते हैं। रंगि-रंग में। भिंनीआ-भिजी रहती है। आपु-आपा-भावार्थ, अहंकार। चिरी विछुंनिआ-चिरों के विछुड़े हुए। गहि-पकड़ के। भुजा-बाँह। अगम-अपहुँच। अपारो-बयंत। सचु सबदु-सदा-थिर भगवान की सिफ़त-सालाह की बाणी। रुणझुणकारो-मिठ्ठी सुरीली मधम आवाज।2।

अर्थ :-हे मेरे मन ! परमात्मा के चरण (मानो) सुंदर तालाब है, उस में तूँ (सदा) टिकिआ रहो। हे मन ! परमात्मा (की सिफ़त-सालाह) के तालाब में स्नान करा कर, तेरे सारे पापों का नास हो जाएगा। हे मन ! सदा (हरि-सर में) स्नान करता रहा कर। (जो मनुख यह स्नान करता है) मित्र भगवान उस के सारे दु:ख नास कर देता है उस का मोह का अंधेरा दूर कर देता है। उस मनुख को जन्म-मरन का गेड़ नहीं भुगतणा पड़ता, मित्र-भगवान उसकी यम की फाहीआँ (फंदे) (आत्मिक मौत लाने वाली फाहीआँ (फंदे)) काट देता है। हे मन ! साध संगत में मिल, परमात्मा के नाम-रंग में जुड़ा कर, साध संगत में ही तेरी हरेक आशा पूरी होगी। गुरू नानक जी कहते हैं, की नानक बेनती करता है-हे हरि ! कृपा कर, तेरे सुंदर कोमल चरणों में मेरा मन सदा टिका रहे।1। साध संगत में सदा आत्मिक आनंद और खुशी की (मानो) एक-रस रौ चली रहती है। साध संगत में संत जन मिल के परमात्मा की सिफ़त-सालाह के गीत गाते रहते हैं। संत जन सिफ़त-सालाह के गीत गाते हैं, वह खसम-भगवान को प्यारे लगते हैं, उन की सुरति परमात्मा के प्रेम-रस के रंग में भिगी रहती है। वह (इस मनुष्य के जन्म में) परमात्मा के नाम की कमाई कमाते हैं, (अपने अंदर से) आपा-भाव मिटा लेते हैं, मुद्दत से बिछुड़े हुए (फिर परमात्मा को) मिल पड़ते हैं। अपहुँच और बयंत परमात्मा उनके ऊपर दया करता है, (उन की) बाँह पकड़ के (उनको) अपना बना लेता है। गुरू नानक जी कहते हैं, कि नानक बेनती करता है-वह संत जन सदा के लिए पवित्र जीवन वाले हो जाते हैं, परमात्मा की सिफ़त सालाह की बाणी उन के अंदर मिठ्ठी मिठ्ठी रौ चलाई रखती है।2।

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