जानिए महावतार भगवान श्री परशुराम जी से जुड़ी कुछ खास बातें

श्री परशुराम को भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार परशुराम वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि के प्रदोषकाल में जिला इंदौर की तहसील महू के गांव जमदग्नेश्वर में अवतरित हुए थे। यह पवित्र तिथि आज भी ‘परशुराम जयंती’ के रूप में मनाई जाती है। अक्षय तृतीया सनातन धर्मियों.

श्री परशुराम को भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार परशुराम वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि के प्रदोषकाल में जिला इंदौर की तहसील महू के गांव जमदग्नेश्वर में अवतरित हुए थे। यह पवित्र तिथि आज भी ‘परशुराम जयंती’ के रूप में मनाई जाती है। अक्षय तृतीया सनातन धर्मियों का प्रमुख त्यौहार है। इसी दिन नर- नारायण, भगवान परशुराम जैसे महान अवतार इस धरती पर अवतरित हुए थे। त्रेता युग का प्रारम्भ इसी तिथि से माना जाता है।

भगवान परशुराम का अवतरण
भगवान परशुराम अक्षय तृतीया की रात्रि के प्रथम पहर अर्थात् प्रदोषकाल में अवतरित हुए थे। ये ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के पुत्र थे। इनकी माता का नाम रेणुका था। इनका वास्तविक नाम राम था किंतु परशु धारण करके वे राम से परशुराम बन गए और इसी नाम से प्रसिद्ध हुए। आशुतोष भगवान शिव की इन पर असीम कृपा थी। कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव से इन्होंने एक अमोघास्त्र प्राप्त किया था जो ‘परशु’ नाम से प्रसिद्ध है। इनके क्रोध से बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी कांपते थे।

धरती को किया पापियों से मुक्त
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार सहस्त्रबाहु अर्जुन हैहय वंश का राजा था। वह बहुत ही अत्याचारी एवं क्रूर था। एक बार वह जमदग्नि ऋषि के आश्रम पर आया और पेड़-पौधों को उजाड़ कर ऋषि की गाय को साथ ले गया। जब परशुराम को उसकी दुष्टता का समाचार मिला तो उन्होंने सहस्त्रबाहु अर्जुन को मार डाला। उसके मर जाने पर उसके दस हजार पुत्र डरकर भाग गए, लेकिन वे अपने पिता के वध का बदला लेना चाहते थे। एक दिन की बात है कि परशुराम अपने भाइयों के साथ आश्रम से बाहर गए हुए थे। मौका पाकर सहस्त्रबाहु के लड़के वहां आ पहुंचे और महाऋषि जमदग्नि को अकेला पाकर उनकी हत्या कर दी।

सती रेणुका क्रंदन करने लगीं। परशुराम जी ने दूर से ही माता का करुण क्रंदन सुन लिया। वह बड़ी शीघ्रता से आश्रम पर आए और पिता जी का मृत शरीर देखकर बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने पिता का शरीर तो भाइयों को सौंप दिया और स्वयं हाथ में फरसा उठाकर दुष्टों का संहार करने निकल पड़े। उन्होंने 21 बार धरती को पापी राजाओं से मुक्त किया। इसी प्रकार उन्होंने रघुकुल में अवतरित होकर बहुत बार पापियों का नाश किया। तत्पश्चात भगवान परशुराम ने अपने पिता के मस्तक को आश्रम में धड़ से जोड़ा व उनकी अंत्येष्टि की। उन्होंने कुरुक्षेत्र में पांच कुंडों का निर्माण कर पित्तर तर्पण किया। इस पर पित्तरों ने उन्हें पाप-मुक्ति का वरदान दिया। आगे चलकर ये पांचों कुंड ‘समन्तपंचक’ तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुए। पितृ आज्ञा से इन्होंने समस्त भू-मंडल प्रजापति कश्यप को दान में दे दिया और स्वयं महेन्द्रांचल पर्वत पर तपस्या करने चले गए। अग्निपुराण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है।

अतुल पराक्रमी एवं उत्साही
परशुराम आदर्श ब्रह्मचारी होने के साथ-साथ अतुल पराक्रमी एवं उत्साही भी थे। भीष्म पितामह एवं कर्ण को धनुर्विद्या इन्होंने ही सिखाई थी। सीता स्वयंवर में अपने गुरु शिव के धनुष को भगवान राम द्वारा तोड़े जाने पर परशुराम महाराज जनक के द्वार पर पहुंचे। पहले तो श्रीराम पर क्रोधित हुए लेकिन बाद में इनका क्रोध शांत हो गया।

श्री परशुराम से संबंधित
तीर्थ भगवान परशुराम के प्रति लोगों की आज भी अनन्य आस्था है। उनका तेज अतुलित था, उन्होंने यज्ञ और आदर्श आचार परंपरा के निर्वाह का नया सिद्धांत दिया। भगवान परशुराम से संबंधित कुछ तीर्थस्थल इस प्रकार हैं :

परशुराम कुंड
यह तीर्थस्थल अरुणाचल प्रदेश में है। कहते हैं कि यहां पर जिस जगह भगवान परशुराम ने ‘परशु’ मारा था, वहां से जल निकल आया। यहां स्नान करने से व्यक्ति ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाता है।

परशुराम आश्रम
यह तीर्थस्थल बालिया के पंचकोशी मार्ग में परसिया ग्राम में स्थित है। यहां के एक वृक्ष के नीचे ही उन्होंने तपस्या की थी।

रूनकता का परशुराम मंदिर
यह तीर्थस्थल मथुरा से 10 किलोमीटर की दूरी पर रूनकता नामक ग्राम में स्थित है। यहां ऊंचे पहाड़ पर माता रेणुका एवं जमदग्नि का और नीचे परशुराम जी का मंदिर है। यहां परशुराम जयंती पर काफी बड़ा मेला लगता है।

खाटी
फगवाड़ा से पांच किलोमीटर की दूरी पर खाटी नामक स्थान पर भगवान परशुराम मंदिर स्थित है। यह जमदग्नि का तपोस्थान भी कहलाता है। गांव में ब्राह्मणों का एक भी घर नहीं होने के कारण मंदिर की सेवा सिख समुदाय के लोग करते हैं। उन्होंने ही सड़क पर परशुराम गेट भी बनाया हुआ है।

रकासन
राहों से 10 किलोमीटर दूर इस स्थान पर रेणुका का मंदिर और भगवान परशुराम का टोबा है। इस स्थान पर पूरे साल श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

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