एशिया की दो प्राचीन सभ्यताओं के रिति-रिवाज, परंपराओं और कई सांस्कृतिक बातों में समानताएं देखने को मिलती है। पूर्व की हज़ारों वर्षों चीन और भारत की संस्कृतियों के पारंपरिक कैलेंडरों में भी एकरुपता झलकती है। दोनों ही देशों के कैलेंडर चंद्रमा दर्शन पर आधारित हैं इसलिए इन्हें चंद्र कैलेंडर भी कहा जाता है। मिसाल के तौर पर जिस तरह से चीन के पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार वर्ष में 24 सौरावधियां होती हैं, उसी तरह भारत के पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार भी वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या आती हैं। ये अमावस्या और पूर्णिमा, चंद्रमा के दर्शन के आधार पर होती है। यानी हर महीने के 15वें दिन अमावस्या यानी चंद्रमा का ना दिखना जैसा भौगोलिक नज़ारा होता है तो उसी महीने के तीसवें दिन पूर्ण चंद्र के दर्शन होते हैं, जिसे पूर्णिमा कहा जाता है। भारतीय पारंपरिक कैलेंडर में इन दोनों 15-15 दिनों की अवधियों को कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष कहा जाता है। अधिकांश तीज-त्योहार और व्रत-उपवास, चंद्रमा के दर्शन के आधार पर ही होते हैं और उपवास की अवधि भी चंद्र दर्शन पर ही समाप्त होती है।
चीन में वसंत ऋतु की शुरुआत से नववर्ष प्रारंभ होता है जिसे लिछुन कहा जाता है। इस वर्ष लिछुन का त्योहार 5 फरवरी को था और उसे खरगोश के वर्ष के रुप में मनाया गया। उसी दिन भारतीय कैलेंडर के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा थी। उस दिन प्रयागराज में लगने वाले माघ मेले का अंतिम स्नान भी था। यानी दोनों ही आयोजन पूर्णिमा पर थे। कुछ और समानताओं पर नज़र डालें तो तो, 21 मार्च को भारत में वर्ष की पहली अमावस्या यानी चैत्र माह की अमावस्या रही और उसके अगले ही दिन भारत में नववर्ष, चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी प्रथम तिथि से शुरू होता है, जिसे गुड़ी पड़वा के रुप में मनाया जाता है। इस बार वो तिथी 22 मार्च की थी। वहीं चीन में चैत्र अमावस्या वाले दिन को छ्वनफन यानी वसंत विषुव कहा गया। तमिलनाडु, केरल, बंगाल और असम में नववर्ष वैशाख माह में मनाया जाता है। साथ ही इस वर्ष 6 मार्च को भारतीय पारंपरिक कैलेंडर की आखिरी पूर्णिमा फाल्गुन पूर्णिमा का त्योहार होलिका दहन और होली के रुप में मनाया गया तो चीन में इसे चिंगचे के रुप मनाया गया।
दोनों ही देशों में पूर्णिमा या अमावस्या पर कोई ऐसी तिथि होती है जिसमें कोई ना कोई पारंपरिक आयोजन किया जाता है। जैसे 5 मई को बैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा का आयोजन होता है, उसी दिन चीन कैलेंडेर के अनुसार लीश्या यानी गर्मियों की शुरुआत का दिन माना जाता है। भारत में भी इसी अवधि के दौरान ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो जाती है। दोनों ही देशों के कैलेंडर, भौगोलिक स्थितियों की भी सूचना देते हैं और इन्हें ऋतुओं के चक्र को भी ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। भारत में वर्ष के 12 महीनों को छह ऋतुओं में बांटा गया है और इसका प्रारंभ ऋतुराज बसंत से होता है। इसके बाद ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर ऋतुओं का क्रम आता है।साथ ही माना जाता है कि हर ऋतु की अवधि करीब दो माह होती है और उस दौरान दो अमावस्या और दो पूर्णिमा आती है यानी दो पारंपरिक माहों के बाद ऋतु परिवर्तन देखने को मिलता है।
हर वर्ष राखी, दिवाली जैसे वे त्योहार हैं जो पूर्णिमा और अमावस्या पर होते हैं। वैसे ही चीन में इस दौरान राखी यानी श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन पाई लू या श्वेत तुषार नाम का 15 वां सौर चक्र आता है। दोनों देशों में मौसम का बदलाव भी तकरीबन समान समय पर ही देखने को मिलता है। वर्ष के 19 वें सौर चक्र को लीदोंग यानी शीतारंभ के रुप में जाना जाता है। उसी दिन भारत में शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है और मान्यता है कि इसी दिन से ठंड की शुरुआत भी हो जाती है। वहीं कार्तिक माह की अमावस्या को दीपावली का त्योहार भारत में मनाया जाता है, उसी तिथि को चीन में श्याओश्वे यानी कम बर्फ नामक सौर चक्र पड़ता है जो कि वर्ष का 20वां सौर चक्र है। चीन में आखिरी और 24 वें सौर चक्र को दाहान यानी अति शीत कहा जाता है और उस तिथि को भारत में इस वर्ष पौष अमावस्या है क्योंकि इस वर्ष एक अधिक मास भी जुड़ा है। जिन वर्षों में अधिक मास नहीं होता है उन वर्षों में 24वें सौर चक्र यानी दाहान की तिथि माघ अमावस्या की होती है और माघ पूर्णिमा की तिथि से चीन में फिर से नववर्ष की शुरुआत यानी पहले सौर चक्र का आगमन हो जाता है।
दोनों कैलेंडरों के अनुसार 24 सौर चक्र और पूर्णिमा एवं अमावस्या निम्नलिखित हैं।
(विवेक शर्मा)