लैंकेस्टर: ब्रिटेन की सैंडविच और कॉफी श्रृंखला ‘प्रेट ए मैंगर’ पर हाल में तब 8,00,000 पाउंड का जुर्माना लगाया गया जब उसका एक कर्मचारी ‘वॉक-इन फ्रीजर’ में फंस गया। वॉक-इन फ्रीजर एक बहुत बड़ा, डिब्बानुमा, बंद जगह जैसा होता है जिसका इस्तेमाल फ्रोजन भोजन या अन्य जल्दी खराब होने वाले सामान का भंडारण करने के लिए किया जाता है। प्रेट ए मैंगर का कर्मचारी करीब ढाई घंटे तक शून्य से कम 18 डिग्री सेल्सियस के फ्रीजर में फंसा रहा। खबरों से पता चलता है कि इसके बाद उसमें हाइपोर्थिमया के लक्षण दिखाई दिए।
ऐसी खबर है कि प्रेट ने माफी मांगी है और कहा है कि वह फ्रीजर निर्माता कंपनी से बातचीत कर रही है ताकि यह दोबारा न हो। यह पहली घटना नहीं है जब कोई कर्मचारी वॉक-इन फ्रीजर में फंस गया हो। अमेरिका में 2022 में ऐसी ही एक घटना में एक व्यक्ति की हाइपोर्थिमया से मौत हो गयी थी। अत्यधिक ठंडा तापमान कोई हल्के में लेने की बात नहीं है। ठंड में शरीर पर गंभीर असर पड़ने में थोड़ा ही वक्त लगता है। शरीर का सामान्य तापमान करीब 37 डिग्री सेल्सियस होता है। शरीर के इस तापमान में अंतर का कारण यह होता है कि या तो वह किसी संक्रमण (जो तापमान बढऩे के कारण हुआ हो) से लड़ रहा होता है या फिर वह ठंड के संपर्क में आ गया होता है।
तापमान में गिरावट के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया को वाहिका संकीर्णन (वैसोकंस्ट्रिक्शन) कहा जाता है जो रक्त वाहिकाओं की दीवारों में छोटी मांसपेशियों द्वारा संकुचन (कंस्ट्रिक्शन) है। अगर तापमान शून्य से कम चार डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है तो वैसोकंस्ट्रिक्शन रक्त में बर्फ के क्रिस्टल बनने से भी रोकता है। जब शरीर के अंदरुनी अंगों का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है तो हाइपोर्थिमया होता है। इसका मतलब है कि शरीर पर्याप्त गर्मी पैदा करने में असमर्थ है। प्रेट कर्मचारी के मामले में उसने शून्य से कम 18 डिग्री सेल्सियस के तापमान में केवल जींस और टी-शर्ट पहनी हुई थी।
हाइपोर्थिमयों के तीन चरण होते हैं: हल्के चरण में शरीर का तापमान 32 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच गिर जाता है। दिल की धड़कन तेज हो जाती है, सांस लेने की दर और रक्तचाप बढ़ जाता है तथा कंपकंपी से मांसपेशियां तनावग्रस्त हो जाती हैं। मध्य चरण में शरीर का तापमान 28 से 32 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इस चरण में शरीर के सभी अंगों के काम करने की गति धीमी हो जाती है और कंपकंपी बंद हो जाती है। गंभीर चरण में शरीर का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस के नीचे चला जाता है और शरीर के ज्यादातर अंग काम करना बंद कर देते हैं। इस चरण तक ज्यादातर लोग अचेत हो जाते हैं। दिल और फेफड़ों की स्थिति बिगड़ जाती है।
अनुसंधान से पता चलता है कि तापमान में हर पांच डिग्री सेल्सियस की गिरावट से किसी व्यक्ति के अस्वस्थ होने या उसकी मौत होने का जोखिम 1.6 गुना बढ़ जाता है। अभी इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है कि कोई व्यक्ति वॉक-इन फ्रीजर में कितने वक्त तक जीवित रह सकता है लेकिन पूर्व के मामलों से मिली सूचना के आधार पर यह कुछ घंटों की बात हो सकती है।
ठंड के खतरे : हाइपोर्थिमया बहुत खतरनाक है क्योंकि यह धीरे-धीरे बढ़ता है और प्रभावित व्यक्ति का मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है। हाइपोर्थिमयों से हुई मौत के कुछ मामलों में लोग नग्न पाए गए या वे अपने आप को गर्म रखने के चक्कर में किसी बंद जगह में छिपे पाए गए। हाइपोर्थिमया पानी में तेजी से होता है क्योंकि ठंडा पानी शरीर से गर्मी को 25 गुना ज्यादा दूर करता है। हाइपोर्थिमया का इलाज शरीर को फिर से गर्म करके किया जाता है। हल्के हाइपोर्थिमयों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए इसका इलाज उन्हें ठंडे स्थान से निकालकर, उनके गीले कपड़े उतारकर और उनके शरीर के तापमान को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त कपड़े पहनाकर किया जाता है।
मध्यम या गंभीर हाइपोर्थिमया से पीड़ित व्यक्ति को किसी बाहरी स्नेत से गर्मी की आवशय़कता होती है क्योंकि उसका शरीर पर्याप्त मात्र में गर्मी पैदा करने में समर्थ नहीं होता है। इसकी संभावना बेहद कम है कि आप खुद को किसी फ्रीजर में फंसा हुआ पाएं। लेकिन अगर आप कभी ऐसी स्थिति में फंसें, जहां हाइपोर्थिमया का जोखिम हो तो इसकी प्रगति को धीमा करने का सबसे सही तरीका कपड़ों की परत चढ़ाना है ताकि शरीर की गर्मी बनाए रखने में मदद मिले। तेज गति से चलना भी बेहद फायदेमंद हो सकता है।