नई दिल्ली: एक सरकारी दस्तावेज में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत में प्रोसैस्ड और पैक्ड फूड की बढ़ती खपत से स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है और इन खाद्य पदार्थों की पोषण सामग्री को नियंत्रित करने और स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों की आवश्यकता हो सकती है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) द्वारा भारत के खाद्य उपभोग में परिवर्तन और नीतिगत निहितार्थ’ शीर्षक वाले पेपर के अनुसार, सभी क्षेत्रों और उपभोग वर्गों में, ‘हम परोसे गए और पैकेज्ड प्रोसैस्ड फूड पदार्थों पर घरेलू व्यय के हिस्से में बढ़ौतरी देखते हैं।’ यह वृद्धि सभी वर्गों में यूनिवर्सल थी, लेकिन देश के शीर्ष 20 प्रतिशत परिवारों और शहरी क्षेत्रों में यह वृद्धि अधिक स्पष्ट थी। चेतावनी देते हुए पेपर में लिखा गया, ‘जबकि पैक्ड फूड एक विकास क्षेत्र है और नौकरियों का एक महत्वपूर्ण निर्माता है, प्रोसैस्ड और पैक्ड फूड की बढ़ती खपत से स्वास्थ्य परिणामों पर भी असर पड़ने की संभावना है।’
भारतीय खाद्य और पेय पैकेजिंग उद्योग में पर्याप्त वृद्धि हो रही है, जिसका बाजार आकार 2023 में 33.73 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2028 तक 46.25 अरब डॉलर हो जाने का अनुमान है। पेपर के अनुसार, पैकेज्ड प्रोसैस्ड फूड की बढ़ती खपत के पोषण संबंधी आशय को समझने के लिए और अधिक रिसर्च की आवश्यकता है और इन फूड की पोषण सामग्री को नियंत्रित करने और स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों की आवश्यकता हो सकती है। रिसर्च पेपर में एनीमिया की व्यापकता पर पोषण सेवन और फूड डाइवर्सिटी के बीच संबंधों का भी वेिषण किया गया है। रिसर्च पेपर में बताया गया है कि पके हुए भोजन के रूप में अनाज की खपत में भी लगभग 20 प्रतिशत की महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई है।