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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114नई दिल्ली: “चहहु जु सांचौ निज कल्यान तो सब मिलि भारत संतान। जपो निरंतर एक जबान, हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान।“ भारतेंदु युग के महत्त्वपूर्ण लेखक, कवि और पत्रकार प्रतापनारायण मिश्र ने यह गीत लिखा था। वह हिंदी खड़ी बोली और भारतेंदु युग के प्रमुख रचनाकारों में से एक थे। जिन्हें ब्राह्मण पत्रिका ने पहचान दिलाई।
24 सितंबर 1856 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बैजनाथ बैथर में पैदा हुए प्रतापनारायण मिश्र को बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई से लगाव नहीं था। जब उनके पिता की मौत हुई तो उन्होंने स्कूल भी छोड़ दिया, मगर उनकी हिंदी, उर्दू और बंगला भाषा पर पकड़ अच्छी थी। साथ ही उन्हें फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत का भी ज्ञान था। वह ‘कविवचनसुधा’ समाचार पत्र को पढ़ते थे, यहीं से ही उनकी रुचि साहित्य में बढ़ी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के लेखन के प्रति उनके झुकाव ने ही उन्हें इस महान साहित्यकार से मिलवाया। भारतेंदु हरिश्चंद्र के संपर्क में आने के बाद उन्होंने हिंदी गद्य तथा पद्य की रचना की। उनकी रचनाशैली, विषय और भाषा पर भी भारतेंदु का काफी प्रभाव रहा। इसी कारण उन्हें प्रतिभारतेंदु और द्वितीयचंद्र भी पुकारा जाने लगा। 1882 के आसपास प्रतापनारायण मिश्र की लिखी पहली रचना प्रेमपुष्पावली प्रकाशित हुई। भारतेंदु से मिली प्रशंसा से उनका उत्साह बहुत बढ़ गया।
इसके बाद साल 1883 में होली के दिन उन्होंने अपने कुछ दोस्तों के सहयोग से ब्राह्मण नामक मासिक पत्र की शुरुआत की। वह सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक कार्यों के संबंध में लेख लिखने लगे। उन्होंने कानपुर में एक ‘रसिक समाज’ की स्थापना की थी और कांग्रेस के कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया।
उनके गद्य-पद्य में जितना देशप्रेम झलकता था, उतनी ही भाषा पर अटूट पकड़ भी उनके लेखों में दिखाई देती थी। हिंदी गद्य के विकास में उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने अधिकतर लेखों में खड़ी बोली का इस्तेमाल किया। वह तत्सम और तद्भव शब्दों के साथ ही अरबी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का इस्तेमाल करते थे।
प्रतापनारायण मिश्र ने ब्राह्मण पत्र की पाठकों से अपील में लिखा, “चार महीने हो चुके, ब्राह्मण की सुधि लेव, गंगा माई जै करै, हमें दक्षिणा देव। जो बिनु मांगे दीजिए, दुहुं दिसि होय अनंद। तुम निश्चिंत हो हम करै, मांगन की सौगंद।“ उनकी लिखी कहावतों और मुहावरों में उनकी कुशलता साफ दिखाई देती है।
प्रतापनारायण ने अपने करियर के दौरान ‘प्रेम पुष्पांजलि’, ‘मन की लहर’, ‘लोकोक्तिशतक’, ‘कानपुर महात्मय’, ‘तृप्यंताम्’, ‘दंगल खंड’, ‘ब्रेडला स्वागत’, ‘तारापात पचीसी’, ‘दीवाने बरहमन’, ‘शोकाश्रु’, ‘बेगारी विलाप’, ‘प्रताप लहरी’ जैसी प्रमुख काव्य-कृतियां लिखीं।
प्रतापनारायण मिश्र अपने प्रिय और जिंदादिल व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। कई बीमारियों और लापरवाही का उनके शरीर पर बुरा असर पड़ा। उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता गया और महज 38 साल की उम्र में 6 जुलाई, 1894 को उनका निधन हो गया।