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Ravana कितना बड़ा ज्ञानी था, ब्राह्मण की संतान रावण क्यों कहलाया असुरों का राजा और क्यों शनि देव को बंदी बनाया

पूरे देश में नवरात्र की धूम है। जहां, रामायण, विजयदशमी या दीवाली का जिक्र होने पर हमारे मन में सबसे पहला ख्याल श्रीराम और रावण के युद्ध और भगवान राम द्वारा रावण के अंत का आता है। लेकिन शास्त्रों में रावण को एक दैत्य, राक्षस, अत्याचारी के अलावा भी कई रूपों में वर्णित किया गया.

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पूरे देश में नवरात्र की धूम है। जहां, रामायण, विजयदशमी या दीवाली का जिक्र होने पर हमारे मन में सबसे पहला ख्याल श्रीराम और रावण के युद्ध और भगवान राम द्वारा रावण के अंत का आता है। लेकिन शास्त्रों में रावण को एक दैत्य, राक्षस, अत्याचारी के अलावा भी कई रूपों में वर्णित किया गया है। रावण को महान विद्वान, प्रकांड पंडित, महाज्ञानी, राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा और अत्यन्त बलशाली जैसे नामों से पुकारा गया है।

देवी दुर्गा की आराधना की जा रही है, क्योंकि लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान राम ने नौ दिनों तक माता रानी के चंडी स्वरूप की आराधना की थी। दसवें दिन मां के आशीर्वाद से रावण का अंत किया था। तभी से नौ दिनों तक मइया की आराधना और 10वें दिन रावण का दहन किया जाता है। पर क्या आपको पता है कि रावण का जन्म कहां हुआ था? वह कितना ज्ञानी था? आइए जानने की कोशिश करते हैं।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण पिता के पक्ष से ब्राह्मण और नाना के पक्ष से क्षत्रीय राक्षस था। इसीलिए उसे ब्रह्मराक्षस की संज्ञा भी दी जाती है। रावण के दादा ऋषि पुलस्त्य ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों और सप्तऋषियों में से एक थे। उनके पुत्र ऋषि विश्रवा की पत्नी क्षत्रीय राक्षस कुल की कैकसी ने रावण को जन्म दिया था।

कैकसी के पिता दैत्य राज सुमाली (सुमालया) थे। ऋषि विश्रवा की दूसरी पत्नी से कुबेर का जन्म हुआ था. रावण ने अपने पिता ऋषि विश्रवा के संरक्षण में वेदों और पवित्र ग्रंथों के साथ ही साथ क्षत्रियों के ज्ञान और युद्धकला में भी महारत हासिल की थी।

इस जिले में माना जाता जन्म स्थान
UP के गौतमबुद्ध नगर में ग्रेटर नोएडा से करीबन 15 किमी दूर बसा बिसरख गांव है, जिसे रावण के गांव के रूप में जाना जाता है। कहते हैं कि इसी जगह पर लंकेश का जन्म हुआ था। यही वजह है कि यहां पर न तो दशहरा मनाया जाता है और न ही रावण के पुतले को जलाया जाता है।

मीडिया रिपोर्ट्स में इसका कारण यह बताया गया है कि कई दशक पहले बिसरख के लोगों ने रावण का पुतला जलाया था। तब वहां एक-एक कर कई लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद लोगों ने रावण की पूजा की, जिससे मौतों का सिलसिला रुका था।

शिव-पार्वती की लंका भाई से छीनी
लंका को विश्वकर्मा ने शिव-पार्वती के लिए बनाया था, जिसे ऋषि विश्रवा ने यज्ञ के बाद शिव से दक्षिणा में मांग लिया था। इस ऋषि पुत्र कुबेर ने सौतेली मां कैकेसी के जरिए रावण को संदेश दिया कि लंका अब उनकी हो चुकी है। हालांकि, रावण चाहता था कि लंका केवल उसी की रहे।

इसलिए उसने कुबेर को धमकी दी कि उसे बलपूर्वक छीन लेगा। पिता विश्रवा जानते थे कि शिव की तपस्या के बाद रावण पर किसी का वश नहीं चलने वाला है। इसलिए कुबेर को सलाह दी कि रावण को लंका दे दें। लंका पर इस तरह से रावण का कब्जा हो गया।

चारों वेदों का था ज्ञाता
रावण जितना बलशाली था, उतना ही विद्वान भी। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि युद्ध में राम का बाण लगने के बाद जब वह अंतिम सांसें ले रहा था भगवान राम ने खुद लक्ष्मण को उससे ज्ञान हासिल करने के लिए कहा था। तब लक्ष्मण लंकाराज के सिर के पास बैठ गए। रावण ने लक्ष्मण को पहला ज्ञान यही दिया था कि अगर गुरु से ज्ञान चाहिए तो हमेशा उसके चरणों में बैठना चाहिए। यह ज्ञान परंपरा आज भी भारत में विद्यमान है।

रावण सामवेद में तो निपुण था ही, बाकी के तीनों वेदों का भी उसे ज्ञान था। वेदों के पढ़ने के तरीके यानी पद पथ में उसे महारथ हासिल थी। लंका के राजा रावण ने शिवतांडव, प्रकुठा कामधेनु और युद्धीशा तंत्र जैसी तमाम रचनाएं कीं।

 

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