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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 06 नवंबर 2024

धर्म : सोरठि महला ९ ॥ मन की मन ही माहि रही ॥ ना हरि भजे न तीरथ सेवे चोटी कालि गही ॥१॥ रहाउ ॥ दारा मीत पूत रथ स्मपति धन पूरन सभ मही ॥ अवर सगल मिथिआ ए जानउ भजनु रामु को सही ॥१॥ फिरत फिरत बहुते जुग हारिओ मानस देह लही ॥ नानक.

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धर्म : सोरठि महला ९ ॥ मन की मन ही माहि रही ॥ ना हरि भजे न तीरथ सेवे चोटी कालि गही ॥१॥ रहाउ ॥ दारा मीत पूत रथ स्मपति धन पूरन सभ मही ॥ अवर सगल मिथिआ ए जानउ भजनु रामु को सही ॥१॥ फिरत फिरत बहुते जुग हारिओ मानस देह लही ॥ नानक कहत मिलन की बरीआ सिमरत कहा नही ॥२॥२॥

अर्थ: (हे भाई! देखो, माया धरी की मंद-भक्ति! उस के) मन की आस मन में ही रह गयी। ना उस ने परमात्मा का भजन किया, ना ही उस ने संत जानो की सेवा की, और मौत तो बोदी से आ पकड़ा॥१॥रहाउ॥ हे भाई! स्त्री, मित्र, पुत्र, गाड़िया, माल-असबाब, धन-पदार्थ सारी ही धरती-यह सब कुछ नास्वंत समझो। परमात्मा का भजन (ही) असली (साथी) है॥१॥ हे भाई! कई युग (योनियों में) भटक भटक कर तो थक गया था। (अब) तुझे मनुख सरीर मिला है। नानक कहता है-(हे भाई! परमात्मा को) मिलने की येही तेरी बारी है, अब तू सिमरन क्यों नहीं करता?॥२॥२॥

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