मुंबई: भारत के माननीय उपराष्ट्रपति एक ऐसे संसदीय ज्ञान के जानकर है, जिसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। साथ ही, कृषि और किसानों की समस्या को हृदय से समझने वाले श्रीमान जगदीप धनखड़ जी धर्मपत्नी सहित इस कार्यक्रम में पधारे हैं। कार्यक्रम 100 वर्ष पूरे होने का है। 100 साल में दो ही चीज होती हैं। या तो हारे, थके, ऊंघते हुए जैसे तैसे बैठे रहो या फिर नई उमंग और नए उत्साह, आनंद और जोश के साथ अगले 100 साल की तैयारी करो। 100 साल पहले 1924 में जब ये प्रयोगशाला बनी थी, तब एक उद्देश्य होगा कि कपास से अधिकतम लाभ कैसे कमाएं क्योंकि उस समय अंग्रेजों का राज था। उनके अपने मकसद थे, उनके अपने उद्देश्य थे, लेकिन आज हमारा संकल्प है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में विकसित भारत का निर्माण। एक वैभवशाली, गौरवशाली, सम्पन्न, समृद्ध भारत का निर्माण और वो निर्माण किसान के बिना नहीं हो सकता। आज भी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान उसकी आत्मा। मंत्री के रूप में मुझे लगता है किसान की सेवा हमारे लिए भगवान की पूजा है।
हमको संस्थान के माध्यम से जो विभिन्न आयाम हैं, वो पूर करने हैं। कपास कपड़े देता है, वो हम पहनते हैं। उसकी उपयोगिता कितनी है बताने की आवश्यकता नहीं है।
दो तीन चीजों मुझे लगती हैं, जो इस संस्थान में जरूरी हैं अभी। भारत में कपास की खेती की स्थिरता बढ़ाने के लिए एक कपास की चुनाई का मशीनीकरण बहुत महत्वपूर्ण है।
यह एकमात्र संस्थान है जो यांत्रिक रूप से चुनी गई कपास के प्रसंस्करण के लिए काम कर रहा है।
यांत्रिक रूप से काटी गई कपास के प्रसंस्करण के संयंत्र और मशीनरी को अनुकूलित करने की जरूर है, जिसके लिए पायलट संयंत्र सुविधा की व्यवस्था यहां की जाएगी।
यह संस्थान कपास का अंतरराष्ट्रीय केंद्र कैसे बन जाए, इसके लिए हर आवश्यक व्यवस्थाएं की जाएंगी।
भारतीय कपास के निर्यात के लिए कॉटन में ट्रेसिबिलिटी सिस्टम विकसित करना बहुत जरूरी है, इसलिए ट्रेसिबिलिटी के लिए नए तकनीकी विकास करने की दिशा में जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। और ये सारी कवायद किसान के लिए भी है।
खेती के क्षेत्र में कुछ चीजें है। एक तो किसानों को कपास का बीज इतना महंगा मिलता है कि कई बार किसानों के फोन आते हैं। मिलकर बताते हैं कि निजी कंपनियों कितना महंगा कपास देती हैं। आईसीएआर को यह कोशिश करना चाहिए कि गुणवत्तापूर्ण बीज जिसको आप बनाते हैं। वो कैसे किसानों को कम दाम पर मिलें। कंपनी किसानों को लूट न पाए।
दूसरा हमारी सोच का केंद्र। कपास उद्योग तो होना चाहिए, क्योंकि खेती के उत्पाद को उद्योग में ले जाना ही पड़ेगा।
तो वो सारे प्रयत्न कीजिए, लेकिन सोच के केंद्र में किसान भी रहे कि कैसे उसको कपास से अधिकतम लाभ मिले, जिससे खेती से वो अपनी आजीविक ठीक से चला पाए, इसलिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ध्यान दे।
मेरा एक अनुरोध है कि 100 साल पूरे हुए हैं। प्रधानमंत्री जी ने 2047 तक का टारगेट हमको दे दिया है, इसलिए आने वाले 2047 तक का रोडमैप हमको बनाना चाहिए। हम 2047 तक क्या क्या करेंगे, वो रोडमैप मुझे चाहिए, जिससे हम उस पर तेजी से काम कर सकें और हम नए नए प्रयोग क्या कर सकते हैं, इस क्षेत्र में 2047 तक CIRCOT सिरमौर होना चाहिए।