विश्व का राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सबसे महान बदलावों से गुजर रहा है। अमेरिका और पश्चिम के प्रभुत्व वाली राजनीतिक, आर्थिक और वित्तीय व्यवस्था हिल रही है, जबकि चीन और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ उद्योग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ रहे हैं। तकनीक नवाचार की अजेय प्रवृत्ति के चलते बहुध्रुवीय दुनिया आकार ले चुकी है, और नई दुनिया में उभरती अर्थव्यवस्थाओं की अहम भूमिका साबित होगा।
उपनिवेशवाद की शुरुआत से ही पश्चिमी ताकतों ने अपनी शक्तिशाली हथियारों के जरिये पूरी दुनिया पर राज किया और पश्चिमी आधिपत्य के प्रभुत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित की। 300 से अधिक वर्षों की औपनिवेशिक शासन के सहारे पश्चिम ने लूटी गई संपत्ति के आधार पर औद्योगिक क्रांति शुरू की, और पूर्वी और पश्चिमी सभ्यताओं के बीच संतुलन पूरी तरह से खत्म हो गया। लेकिन, पश्चिमी सभ्यता के प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था में, कमज़ोरों को धमकाना और क्रूर वंचना आम बात हो गई।
पश्चिम की आबादी विश्व आबादी का केवल दसवां हिस्सा है, जबकि यह 80% धन पर कब्जा करती है। पश्चिमी देशों में हर साल उपभक्त होने वाले मांस, अंडे और दूध 1 अरब टन तक पहुंच गया है, जबकि विकासशील देशों में कई लोग अभी भी भूख से पीड़ित हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक समय दुनिया के आधे से ज़्यादा हिस्से के बराबर थी, और उसने उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से वैश्विक व्यवस्था स्थापित की। जिसके तहत अमेरिका और पश्चिम विश्व के अधिकांश बाजारों, संसाधनों और वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों पर नियंत्रण रखते हैं। 1991 में सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में हुए नाटकीय बदलावों ने शीत युद्ध की समाप्ति की गई और अमेरिका एकमात्र सुपरपॉवर बना।
तब कुछ पश्चिमी राजनेताओं ने घोषणा की कि पश्चिमी शैली की लोकतांत्रिक प्रणाली दुनिया में एकमात्र सही गंतव्य है। हालाँकि, विश्व इतिहास का क्रम एक पहिये की तरह हमेशा घूम रहा है। इसके बाद आपदाओं की एक श्रृंखला आई, जिसमें 9/11 की घटना, अफगानिस्तान युद्ध, इराक युद्ध, 2008 वित्तीय संकट, मध्य पूर्व संघर्ष, शरणार्थी संकट आदि शामिल हैं। जिनसे अमेरिकी मिथक के पतन की घोषणा की गई।
उ
धर, विश्व मामलों में ब्रिक्स और एससीओ द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली उभरती अर्थव्यवस्थाओं की आवाज लगातार बढ़ रही है, और उच्च प्रौद्योगिकी में चीन की छलांग ने दुनिया पर अमेरिका के वर्चस्व को पूरी तरह से हिला दिया है। इसके कारण अमेरिका अलगाववाद की ओर लौट रहा है, और अमेरिका ने न केवल चीन के विरुद्ध, बल्कि मैक्सिको, कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया और जर्मनी के विरुद्ध भी व्यापार प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है।
एआई द्वारा प्रस्तुत डिजिटल क्रांति ने दुनिया के आर्थिक मॉडल और जीवनशैली को पूरी तरह से बदल दिया है। नई तकनीकी क्रांति में, चीन और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपनी खुद की प्रवचन शक्ति प्रणाली स्थापित करनी होगी।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)