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विनिर्माण को प्रोत्साहन के लिए कच्चे माल पर सीमा शुल्क घटाए सरकार : Tax Expert

नई दिल्ली: सरकार को स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए आगामी बजट में चिकित्सा उपकरण, इलैक्ट्रॉनिक्स सामान और जूता-चप्पल (फुटवियर) उद्योग में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल (इनपुट) पर सीमा शुल्क में कटौती करनी चाहिए। कर विशेषज्ञों ने यह सुझाव दिया है। डैलॉयट इंडिया के भागीदार (अप्रत्यक्ष कर) हरप्रीत सिंह ने कहा कि एक.

नई दिल्ली: सरकार को स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए आगामी बजट में चिकित्सा उपकरण, इलैक्ट्रॉनिक्स सामान और जूता-चप्पल (फुटवियर) उद्योग में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल (इनपुट) पर सीमा शुल्क में कटौती करनी चाहिए। कर विशेषज्ञों ने यह सुझाव दिया है। डैलॉयट इंडिया के भागीदार (अप्रत्यक्ष कर) हरप्रीत सिंह ने कहा कि एक फरवरी को संसद में पेश किए जाने वाले 2025-26 के बजट से सीमा शुल्क पक्ष की प्रमुख मांगें दरों को युक्तिसंगत बनाने, व्यवस्था को सरल करने और मुकद्दमेबाजी और विवाद प्रबंधन की होंगी।

सिंह ने कहा, ‘चरणबद्ध विनिर्माण योजना की तर्ज पर इलैक्ट्रॉनिक्स, घरेलू उपकरणों, स्वास्थ्य सेवा उत्पादों और फार्मास्युटिकल्स में कच्चे माल में कुछ शुल्क कटौती की उम्मीद करते हैं। ये ऐसे उद्योग हैं जहां सरकार विनिर्माण के मामले में प्रोत्साहन देना चाहती है।’ जुलाई, 2024 में पेश बजट में घोषित प्रस्तावित सीमा शुल्क युक्तिकरण पर सिंह ने कहा कि जिन क्षेत्रों में करों को तर्कसंगत किया जा सकता है उनमें स्वास्थ्य सेवा, चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, रैफ्रिजरेटर, एसी जैसे बड़े इलैक्ट्रॉनिक सामान, इलैक्ट्रॉनिक्स, जूते और खिलौने शामिल हैं। वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में कारोबार सुगमता के लिए सीमा शुल्क ढांचे की वृहद समीक्षा की घोषणा की गई थी। इसमें कहा कि अगले 6 माह में सीमा शुल्क ढांचे की समीक्षा की जाएगी।

इससे कारोबार करना सुगम होगा, उलट शुल्क ढांचे और विवादों को कम करने में मदद मिलेगी। वर्गीकरण विवादों को कम करने के लिए, बजट ने सीमा शुल्क दरों की समीक्षा की घोषणा की थी। प्राइस वॉटरहाऊस एंड कंपनी एलएलपी के प्रबंध निदेशक अनुराग सहगल ने कहा, ‘सरकार विभिन्न उत्पादों के लिए अलग-अलग स्लैब ला सकती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि वह मूल्य श्रृंखला में कहां स्थित है। ग्रांट थॉर्नटन भारत के भागीदार मनोज मिश्र ने कहा कि सीमा शुल्क विवादों में करीब 50,000 करोड़ रुपए फंसे हुए हैं।

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