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हुक्मनामा श्री हरमंदिर साहिब जी 29 जनवरी 2025

Hukamnama Sahib : सलोक मः १ ॥  मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥ बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥ हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥ तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥ जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥ सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥.

Hukamnama Sahib : सलोक मः १ ॥  मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥ बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥ हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥ तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥ जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥ सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥ सतीआ मनि संतोखु उपजै देणै कै वीचारि ॥ दे दे मंगहि सहसा गूणा सोभ करे संसारु ॥ चोरा जारा तै कूड़िआरा खाराबा वेकार ॥ इकि होदा खाइ चलहि ऐथाऊ तिना भि काई कार ॥ जलि थलि जीआ पुरीआ लोआ आकारा आकार ॥ ओइ जि आखहि सु तूंहै जाणहि तिना भि तेरी सार ॥ नानक भगता भुख सालाहणु सचु नामु आधारु ॥ सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुणवंतिआ पा छारु ॥१॥

Hukamnama Sahib अर्थ :- मुसलमानो को शरह की प्रशंसा (सब से अधिक अच्छी लगती है), वह शरह को पढ़ पढ़ के (यह) विचार करते हैं (कि) भगवान का दीदार करने के लिए जो मनुख (शरह की) बंदश में पड़ते हैं, वही भगवान के मनुख हैं। हिंदू शास्त्रों द्वारा, सालाहुण-योग सुंदर और बयंत हरि को सलाहते हैं, हरेक तीर्थ पर नहाते हैं, मूर्तियों के आगे भेटा धरते हैं और चंदन आदि के सुगंधी वाले पदार्थ इस्तेमाल करते हैं। योगी लोक समाधी लगा के करतार को धिआतें हैं और ‘अलख, अलख’ उस का नाम उच्चारते हैं। (उन के मत अनुसार जिस का वह समाधी में ध्यान करते हैं वह) सूखम सवरूप वाला है, उसके ऊपरमाया का प्रभाव नहीं पड़ सकता और यह सारा (जगत रूप) आकार (उसी की ही) काया (शरीर) का है। जो मनुख दानी हैं उन के मन में खुशी पैदा होती है, जब (वह किसी जरूरतमंद को) कुछ देने की विचार करते हैं; (पर जरूरतमंदों को) दे दे के (वह अंदरे अंदर करतार से उससे भी) हजारों गुणा अधिक माँगते हैं और (बाहर) जगत (उन के दान की) प्रशंसा करता है। (दूसरी तरफ, जगत में) बयंत चोर, पर-स्त्री गामी, झूठे, बुरे और विकारी भी हैं, जो (विकार कर कर के) पिछली की गई कमाई को ख़त्म कर के (यहाँ से खाली हाथ) चल पड़ते हैं (पर यह करतार के रंग हैं) उनको भी (भगवन ने ही) कोई इस प्रकार की कार्य सोंपा हुआ है। जल में रहने वाले, धरती पर बसने वाले, बयंत पुरीआँ, लोकों और ब्रहिमंड के जीव-वह सारे जो कुछ कहते हैं सब कुछ, (हे करतार !) तूँ जानता हैं, उनको तेरा ही सहारा है। हे नानक ! भक्त जनो को केवल भगवान की सिफ़त-सालाह करने की चाह लगी हुई है, हरि का सदा अटल रहने वाला नाम ही उन का सहारा है। वह सदा दिन रात अनंद में रहते हैं और (आप को) गुणवानों के पैरों की ख़ाक समझते हैं।1।

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