Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the rocket domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114
Bhimrao Ambedkar convinced arguments of Laxminarayan Sahu
विज्ञापन

लक्ष्मीनारायण साहू के तर्कों के कायल हो गए थे भीमराव अंबेडकर, छुआछूत के विरुद्ध चलाया था आंदोलन

नई दिल्ली: ‘यह संविधान जिन आदर्शों पर आधारित है, उनका भारत की आत्मा से कोई संबंध नहीं है। यह संविधान यहां की परिस्थितियों में कार्य नहीं कर पाएगा और लागू होने के कुछ समय बाद ही ठप हो जाएगा’, ये शब्द थे ओडिशा के समाजसेवी और सार्वजनिक कार्यकर्ता लक्ष्मीनारायण साहू के। जिन्होंने ना केवल अस्पृश्यता.

- विज्ञापन -

नई दिल्ली: ‘यह संविधान जिन आदर्शों पर आधारित है, उनका भारत की आत्मा से कोई संबंध नहीं है। यह संविधान यहां की परिस्थितियों में कार्य नहीं कर पाएगा और लागू होने के कुछ समय बाद ही ठप हो जाएगा’, ये शब्द थे ओडिशा के समाजसेवी और सार्वजनिक कार्यकर्ता लक्ष्मीनारायण साहू के। जिन्होंने ना केवल अस्पृश्यता (छुआछूत) के विरुद्ध आंदोलन चलाया बल्कि महिलाओं की स्थिति सुधारने में भी अहम भूमिका निभाई।3 अक्टूबर, 1890 को ओडिशा के बालासोर में जन्मे लक्ष्मीनारायण साहू एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे, जिनकी शुरुआती शिक्षा बालासोर में हुई। इसके बाद उन्होंने एमए और एलएलबी की डिग्री हासिल की।

लक्ष्मीनारायण साहू एक उदार विचारों वाले शख्स थे। उन्होंने अपना जीवन समाज के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। हालांकि, वह राजनीति का भी हिस्सा रहे। साल 1936 में उन्होंने ‘उत्कल यूनियन कॉन्फ्रेंस’ की स्थापना की थी। इसके बाद साल 1947 में वह ओडिशा विधानसभा के सदस्य चुने गए। यही नहीं, वह भारत की संविधान सभा के सदस्य भी थे।

बताया जाता है कि जब संविधान का मसौदा तैयार हो रहा था, तब लक्ष्मीनारायण साहू अपने उग्र और तथ्यात्मक बहस के कारण चर्चाओं में बने रहते थे। लक्ष्मीनारायण साहू द्वारा दिए गए तर्कों के संदर्भ में डॉ. भीमराव अंबेडकर को स्वीकार करना पड़ा था कि संविधान में विरोधाभास है, जो भारत को तोड़ने के लिए पर्याप्त है।

उन्होंने अपने जीवन काल में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया। उनकी कहानियों में सृष्टि, स्वर्ग और नर्क, जीवन और मृत्यु से जुड़ी बातों का जिक्र होता था। उनकी मशहूर कहानियों में ‘वीणा’, ‘सुलता’, ‘कंट्रोल रूम’ शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने ‘पशारा’ और ‘स्प्रिंग्स ऑफ द सोल’ जैसी रचनाएं भी लिखी।

साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें साल 1955 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही उन्हें ओडिशा के इतिहास पर उनके कार्यों और लेखन के लिए ‘इतिहास रत्न’ की भी उपाधि दी गई। लक्ष्मीनारायण साहू ने 18 जनवरी 1963 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

 

Latest News