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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/dainiksaveratimescom/wp-includes/functions.php on line 6114यह दुनिया रंग-रंगीली है। इसमें खाने-पीने के लिए कुदरत ने बहुत से फल-सब्जी-दाल, अनाज, मसाले है जिनसे इंसान ने बहुत से व्यंजन बनाए हैं। फिर भी संसार में कुछ ऐसे लोग हैं जो इन खाद्य पदार्थों की जगह अखाद्य पदार्थों को अपना आहार बनाते हैं। भयानक जीवों का जूस निकालकर पीते हैं। इस सबके बावजूद ये सामान्य जीवन भी जीते हैं। हम यहां ऐसे ही कुछ लोगों की चर्चा कर रहे हैं। इस दुनिया में एक शख्स ऐसा भी है जो नट बोल्ट खाता है।
जी हां, अमृतसर का सुरिंदर लोहे की बनी चीजें ऐसे खा लेता है जैसे कोई बहुत अच्छी डिश खा रहा हो। होटल चलाने वाला सुरिंदर और लोगों के लिए तो स्वादिष्ट व्यंजन बनाता-बनवाता है लेकिन 2001 से उसे लोहे की चीजें खाने की आदत पड़ गई है। 24 घंटे में वह एक बार लोहे का स्वाद जरूर चखता है। जिप के लॉक, नट व लोहे के कुछ सिक्के खा जाना तो उसके लिए सामान्य बात है। सुरिंदर का कहना है कि एक दिन वह स्कूटर को खाकर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराना चाहता है।
कोलकाता की पंपा घोष की भी ऐसी ही आदत है किन्तु वह सुरिंदर से भी एक हाथ आगे है। लोहे के अलावा शीशे-कांच व पत्थर के टुकड़े भी खा सकती हैं। जब उसने सामान्य खानपान में अरूचि दिखाई तो पंपा की मां व पिता डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड किया तो उसके पेट में शीशे-लोहे, पत्थर व लकड़ी के टुकड़े दिखाई पड़े। पंपा का स्वास्थ्य सामान्य था फिर भी चिकित्सक ने उसे ये वस्तुएं न खाने की चेतावनी दी।
वहीं साकीव (विदेश) की 3 वर्षीय बच्ची कांप्तुएस्कर संथात पत्थर खाती है। उसकी जांच करने वाले डॉक्टर ने उसे पाइका रोग का मरीज बताया। डॉ. सुटार्न यात्रकुल के मुताबिक इस बीमारी के शिकार वे बच्चे होते हैं जिनके मां-बाप उनका ध्यान नहीं रखते। चीन की बीजिंग निवासी एक महिला तो पिछले 20 वर्षों से पत्थर खा रही है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इस 44 वर्षीया महिला को केक से भी ज्यादा आनंद पत्थर खाने में आता है। चाइना मैडिकल यूनिवर्सिटी के एक डॉक्टर के अनुसार महिला पूर्ण स्वस्थ है। आश्चर्य की बात यह कि गर्भावस्था में पत्थर खाने के बावजूद उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है।
थाईलैंड निवासी वेक श्रीखाईमूक जिंदा तिलचट्टों व कानखजूरों को ऐसे खा जाता है मानों नूडल्स खा रहा हो। कॉक्रोच खाने की आदत के चलते उसे अब ‘वेक कॉक्रोच’ के नाम से पुकारा जाता है। वेक का कहना है कि इस तरह के खानपान से उसके स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं हुआ है। अब एक ऐसी बकरी की बात जो कांच खाकर भी सामान्य है। रोह (बिहार) के कुंजैला ग्रामवासी प्रसादी महतो की बकरी घास-पात ही नहीं, कांच भी खा जाती है। मार्च 2004 में महतो ने इस बात पर ध्यान दिया था कि बकरी कांच को सहज रूप से खा रही है। उन्हें अचम्भा और चिंता हुई किंतु बकरी को सामान्य जीवन जीते देख उनकी चिंता दूर हो गई है। बकरी अब भी कांच, मजे से चट कर जाती है।
झारखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाली जनजातियां चींटी की चटनी व दाल बड़े स्वाद लेकर खाते हैं। मध्य प्रदेश सीहोर जनपद के गांव मैना का कैलाश तो छिपकली का जूस पीने के लिए बहुचर्चित हो चुका है। अब चालीस की उम्र पार चुका कैलाश 8 साल की उम्र से छिपकली व अन्य कीड़े-मकौड़ों का जूस पी रहा है। सीतामढ़ी हीरापुर नगत पट्टी (भदोही) उत्तर प्रदेश का छोटे लाल बिंद सांपों का जहर ऐसे पी लेता है जैसे चाय या कोका कोला पी रहा हो। राजस्थान के मूल निवासी अब महाराष्ट्र में रहने वाले मनमाडवासी प्रवीन शर्मा (26 वर्ष) को रसोई गैस पीने के लिए न मिले तो वह बैचेनी, महसूस करने लगता है। कुकिंग गैस अब प्रवीण शर्मा की खुराक बन चुकी थी।