Badrinath में अलकनंदा नदी हुई रौद्र…खाली कराया गया तप्त कुंड, श्रद्धालुओं में सहम का मौहाल

पानी ऐतिहासिक तप्तकुंड की सीमा को छूने लगा जिससे धाम में मौजूद श्रद्धालु सहम गए। हालांकि, कुछ घंटे उफान पर रहने के बाद नदी का जलस्तर सामान्य हो गया।

गोपेश्वरः उत्तराखंड में उच्च गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में स्थित विश्वविख्यात बद्रीनाथ मंदिर के ठीक नीचे अलकनंदा नदी के तट पर महायोजना के तहत हो रही खुदाई के कारण सोमवार देर शाम नदी में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई और पानी ऐतिहासिक तप्तकुंड की सीमा को छूने लगा जिससे धाम में मौजूद श्रद्धालु सहम गए। हालांकि, कुछ घंटे उफान पर रहने के बाद नदी का जलस्तर सामान्य हो गया। अलकनंदा, बद्रीनाथ मंदिर से कुछ ही मीटर नीचे बहती है। नदी तट और मंदिर के बीच में ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पवित्र तप्तकुंड है और मंदिर के दर्शन करने से पूर्व श्रद्धालु गर्मपानी के इसी कुंड में स्नान कर भगवान बद्रीविशाल के दर्शन करते हैं।

इसी स्थान के पास ब्रह्मकपाल क्षेत्र है जहां भक्तजन अपने पूर्वजों की याद में पित्रदान करते हैं। इसी क्षेत्र में नदी के तट पर 12 शिलाएं हैं जो बद्रीनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पूजनीय है। अलकनंदा नदी इसी इलाके में कई घंटों तक उफान पर रही। प्रत्यक्षर्दिशयों के अनुसार, नदी का यह रौद्र रूप भयावह था। स्थानीय लोगों ने बताया कि महायोजना के तहत हो रही खुदाई के कारण बद्रीनाथ मंदिर के निचले हिस्से में तट पर जमा मलबे की मिट्टी अलकनंदा का जलस्तर बढ़ने के साथ बह गई थी लेकिन छोटे पत्थर और बोल्डर वहीं पर जमे रहे और उन्होंने मंदिर के नीचे अलकनंदा के प्रवाह को रोक दिया।

इससे लगभग तीन घंटे तक बद्रीनाथ मंदिर का ब्रह्मकपाल क्षेत्र खतरे की जद में रहा। बद्रीनाथ तीर्थपुरोहित संगठन के अध्यक्ष प्रवीण ध्यानी ने बताया कि पिछले काफी समय से हम लोग महायोजना के निर्माण कार्यों के कारण बद्रीनाथ मंदिर, खासतौर पर तप्तकुंड को होने वाले संभावित खतरे को लेकर स्थानीय प्रशासन को आगाह करते रहे हैं। उन्होंने कहा, कि ‘पिछले एक माह में इस संबंध में मैं जिलाधिकारी से दो बार व्यक्तिगत रूप से निवेदन कर चुका हूं लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया।’’

पिछले 40 सालों से बद्रीनाथ में तीर्थपुरोहित व्यवसाय से जुड़े ध्यानी ने कहा कि अलकनंदा के जलस्तर का इस तरह बढ़ना उन्होंने पहली बार देखा है। उन्होंने कहा, कि ‘पहली बार अलकनंदा के पानी में सभी 12 शिलाएं समा गईं और ब्रह्मकपाल तथा तप्तकुंड तक नदी का पानी आना इस विश्वविख्यात मंदिर के लिए खतरे की घंटी है।’’ बद्रीनाथ में महायोजना के नाम पर किए जा रहे निर्माण कार्यो के संभावित खतरों को लेकर दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख चुके प्रख्यात पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि अलकनन्दा हिमनद से निकलने वाली नदी है जिस पर उच्च हिमालय में हो रही गतिविधियों का सीधा प्रभाव पड़ता है।

उन्होंने बताया कि 1930 में अलकनंदा का जलस्तर बद्रीनाथ मंदिर के समीप तीस फुट उपर उठ गया था और 2014 में भी अलकनंदा ने बद्रीनाथ में उग्र रूप धारण किया था। भट्ट ने कहा कि महायोजना के तहत कार्यक्रम शुरू करने से पूर्व यहां की नदियों की प्रकृति, यहां के भूगोल और मौसमी प्रभावों का आकलन किया जाना चाहिए। चमोली के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नन्द किशोर जोशी ने बताया कि सोमवार शाम नदी के जलस्तर के बढ़ने की सूचना पर ‘अलर्ट’ जारी किया गया था लेकिन इससे किसी तरह के नुकसान की कोई सूचना नहीं है।

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