नेशनल डेस्कः चार राज्यों में से उत्तर भारत के तीन राज्यों में कांग्रेस के तीन क्षत्रपों का नेतृत्व धराशाही हो गया। ओबीसी कार्ड लेकर देशभर में मुद्दा बनाने चली कांग्रेस के दो-दो ओबीसी मुख्यमंत्री राज्य गंवा बैठे, उनका हिंदुत्व कार्ड भी असल के आगे नहीं ठहरा। जानिए तीनों राज्यों में कांग्रेस की हार का विश्लेषण।
दक्षिण में तेलंगाना की जीत ने भले ही कांग्रेस को सांत्वना दी हो। लेकिन पार्टी उत्तर भारत के तीनों राज्यों में अपने क्षत्रपों के सहारे उतरी और धड़ाम हो गई। ऐसे में पार्टी के भीतर तीनों राज्यों को लेकर तमाम सवाल चर्चा में हैं, जो आहिस्ता आहिस्ता सामने आएंगे।
राजस्थान
गहलोत ने आलाकमान को खुली चुनौती दी। ज़्यादातर योजनाएं आखिरी साल में घोषित हुईं। सर्वे के बावजूद अपनों के टिकट नहीं कटने दिए। सचिन-गहलोत का लंबे वक्त का झगड़ा आखिर तक अंदर से नहीं सुलझा। अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं की बजाय चुनावी एजेंसी डिज़ाइन बॉक्स सब पर हावी रहा।
मध्यप्रदेश
कमलनाथ जननेता की छवि पर खरे नहीं उतर सके। कार्यकर्ताओं, नेताओं, विधायकों की कमलनाथ के समय नहीं देने की अरसे से शिकायत नज़रंदाज़ की गई। टिकट बंटवारे में कमलनाथ ज़मीनी सियासी हकीकत और सर्वे में तालमेल नहीं बैठा सके। सिंधिया के जाने के बाद 75 बसंत पार कर चुके कमलनाथ और दिग्गी के सामने कोई युवा नेता सिर नहीं उठा सका। कमलनाथ से दोस्ती के चलते दिग्विजय हां में हां ही मिलाते दिखे। शिवराज की मेहनत और सहजता के आगे कमलनाथ कहीं नहीं टिके। कमलनाथ का सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव, यहां तक कि, धीरेंद्र शास्त्री के सामने नतमस्तक होना फ्लॉप रहा। आखिर में कांग्रेस अतिआत्मविश्वास का शिकार हुई।
छत्तीसगढ़
भूपेश बघेल का एकला चलो ले डूबा। बघेल और टीएस सिंह देव की रस्साकशी खुलकर दिखी। यहां भी सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड बीजेपी के सामने औंधे मुंह गिरा। साथ ही मीडिया में प्रचार के शोर में खिसकती ज़मीन और योजनाओं का धरातल पर नहीं उतरना हार की वजह बने। वहीं शराब बंदी का वादा करके पूरा नहीं करने के कारण सरकार में आये बघेल महिलाओं के गुस्से का शिकार बने।
उत्तर भारत के तीनों राज्यों में खुद की उम्मीदों पर पानी फेरती कांग्रेस की हार 2024 के लिहाज से उसे मायूस ही करती बल्कि उसके केंद्र और राज्य के नेतृत्व के साथ ही उसके संगठन पर बड़ा सवालिया भी लगा रही है। गहलोत, दिग्विजय, कमलनाथ की तिकड़ी की सियासी पारी भी खतरे में है। ऐसे में दक्षिण में तेलंगाना जीत का सेहरा बांध रही कांग्रेस को 2024 के लिहाज से भी खड़ा की ज़िम्मेदारी अब उन्हीं के कंधों पर है। आखिर उत्तर भारत मे जातिगत जनगणना, फ्री की स्कीम या गारंटी, सॉफ्ट हिंदुत्व की नीति, क्षत्रपों के चेहरों के बावजूद कांग्रेस क्यों हारी? ऐसे अब झुके कंधों के साथ भविष्य में इंडिया गठबंधन में उसकी भूमिका भी सियासी तौर पर दिलचस्प होने वाली है।