नेशनल डेस्क: विदेश मंत्रालय (एमईए) ने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (यूएससीआईआरएफ) की 2025 की वार्षिक रिपोर्ट को गंभीर चिंता का विषय बताया है और इसे एक बार फिर से पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित आकलन के रूप में खारिज किया है। मंत्रालय ने कहा कि यूएससीआईआरएफ ने धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर अपनी पुरानी और गलत दृष्टिकोण को जारी रखा है। यूएससीआईआरएफ को एक चिंता का विषय के तौर पर घोषित किया जाना चाहिए।
जानबूझकर पेश किया गया एजेंडा
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, “हमने हाल ही में जारी की गई यूएससीआईआरएफ की 2025 वार्षिक रिपोर्ट देखी है, और यह एक बार फिर से उस पैटर्न को दोहराती है जिसमें पक्षपाती और राजनीतिक दृष्टिकोण से भारत की स्थिति का आकलन किया गया है।” उन्होंने यह भी कहा कि यूएससीआईआरएफ ने भारत के धार्मिक विविधता और बहुसांस्कृतिक समाज को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है, जो एक जानबूझकर किया गया एजेंडा लगता है, न कि वास्तविक धार्मिक स्वतंत्रता की चिंता।
Our response to media queries regarding the 2025 Annual Report of United States Commission on International Religious Freedom
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— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) March 26, 2025
जायसवाल ने भारत की जनसंख्या का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत में 1.4 अरब लोग रहते हैं और ये सभी मानवता के विभिन्न धर्मों के अनुयायी हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत को यह उम्मीद नहीं है कि यूएससीआईआरएफ भारत के बहुलवादी ढांचे और इसके विविध समुदायों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को समझेगा।
भारत लोकतंत्र और सहिष्णुता का प्रतीक
उन्होंने कहा, “भारत में 1.4 बिलियन लोग रहते हैं, जो मानवता के सभी ज्ञात धर्मों के अनुयायी हैं। हमें उम्मीद नहीं है कि यूएससीआईआरएफ भारत के विविध समाज की वास्तविकता को समझेगा।” साथ ही उन्होंने यह भी कहा, “भारत लोकतंत्र और सहिष्णुता का प्रतीक है, और इसको कमजोर करने के प्रयास सफल नहीं होंगे। असल में, यह यूएससीआईआरएफ है, जिसे चिंता का विषय होना चाहिए।”
यूएससीआईआरएफ की अमेरिकी सरकार से अपील
रिपोर्ट में यूएससीआईआरएफ ने अमेरिकी सरकार से अपील की है कि भारत को धार्मिक स्वतंत्रता उल्लंघन के मामलों में “विशेष चिंता का देश” (CPC) के रूप में नामित किया जाए, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (IRFA) के तहत किया जाता है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि 2024 में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले और भेदभाव बढ़ने की संभावना है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति और भी खराब हो सकती है।